Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACI १९६ पांज्ञा०पू०॥ (३) ॥ कुणखेले तोसु होरीरे एचाल ॥ . अवधिज्ञान नित नजियैरे निज विमल न क्तिसें अनुगामी ते देशांतरगत ज्ञानीने अनु गमियरे नि० ॥१॥ जिमबऊ बजतर दारु प्रपें कालाजलन वधैये रे नि सुविमलविम लतराध्यवसायें वर्षमान जग जयियें रेनि० प्रतिपातीते एककालमें दीपइवास्तं गमियें रे नि० सेतरनेदें गुणकारण यह बछा नहीकहि मेरे नि०॥३॥ नव प्रत्ययिते घऊतर नेर्दै सुरनिरि नवमां गहियेरे नि० परमावधि अ निरामचंद्रोदयेंनिहचें केवल लहिये रे नि०४ . ॥श्लोक ॥ यच्चैकं ह्यनुगामिचान्य दुदितं संवर्धमान त था तातीयं प्रतिपात्य मूनिहि पुनर्न[यूर्वका णीहशं । षोढारूपि पदार्थ मात्र विषयं त्री सिझ चक्रेनघे द्रव्य रष्ठनिरादरात्तदवधि ज्ञा नं शनैरर्चये ॥१॥ नहोत्रीश्वधिज्ञानायजलंचं यजामहेस्वाहा इति अवधि ज्ञानम् ॥ जेसप्तम गुणठाण थित ऋछिमंत मुनिराय ॥दोहा॥ For Private And Personal Use Only

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