Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 197
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९४ www.kobatirth.org ॥ पां०ज्ञा०पू० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only (9) संख ॥ संखकाल धारण उक्तिष्ठ अचोए हनिक खरे न० श्री० ॥ ४॥ ॥ इलोक युग्मम् ॥ लोकेवग्रहईहनंपुनरपायोधारणेत्यंचतु । दैः क्लृप्तमवग्रहोप्युनयथाथो व्यंजनातोर्धतः॥त्व ङासारसनाश्रवोजिरथसा वेदोन्मिताव्यं जना षोढार्थोपिमनोक्तियुक्तरसनात्वग्घ्राणकर्णैः स्फु टम् ॥ १ ॥ षोढेहापितथेन्द्रियैश्वमनसापायो पिषधातथा । षधैखलुधारणा पिचमति ज्ञानंकिलेत्यंचयत् ॥ अष्टाविंशतिधामतं नव पढ़ेगंधादिभिः पूजन | द्रव्यैरष्टजिरर्चयाम तदहंजक्त्याशिवायामलम् ॥ २ ॥ 1 श्रीमति ज्ञानाय जलं १ चंदने २ पुष्पं ३ धूपं ४ दीपं ५ प्रकृतं ६ नैवेदनं ७ फलं ८ यजामहेस्वाहा ॥ इतिमतिज्ञानपूजा १ ॥ ॥ दोहा ॥ सर्वद्रव्यगुणपर्यय । प्रकट करणदिनकार अगम अपार अनंतश्रुत । गुणगणरयणा धार ॥ १ ॥ अभिलापेंप्लावित अथ । ग्र हण हेतु चिदनूप ॥ समकित मिथ्यातकरी वोधावोधसरूप ॥ २ ॥

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