Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 195
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९२ www.kobatirth.org ॥ पा०क०पू० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्थ पंच ज्ञान पूजा ॥ (१) ॥ दोहा ॥ स्वस्तिश्री केलीसदम । नतसुर लिऊंकार ॥ नाजिनंदपदपनयुग । सुरुचिरमानसधार१ ॥ निखिलजंतु सुखकारिणी। जिनवाणीतुरधार ॥ पंचज्ञानपूजनतणो । कहस्युंविधि विस्तार २ ॥ ॥ ढाल ॥ सकल क्रियानो मूलजे राजे । श्रद्वैतिक जसुमहिमा बाजै ॥ जेसऊ दुरित तिमिर हारे । लजित कोटि दिनंद अवतार ॥ १ ॥ ॥ उल्लालो ॥ श्वतार जसुमतिनाण । श्रुत पुनरवधि नाण बखानियें || मनज्ञाव परिणति विशद वेदन मनः पर्यय जानियें । वर अनंतानंत केवल पहिय गइ जाणए ॥ प्रतिपत्ति ने दै ज्ञान नाख्युं जिनपती जगनाणए ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ ढाल ॥ विंशति पदमा अष्टम पद ए । जावें बंदन

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