Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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॥ पा०क०पू० ॥
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॥ श्थ पंच ज्ञान पूजा ॥
(१)
॥ दोहा ॥ स्वस्तिश्री केलीसदम । नतसुर लिऊंकार ॥ नाजिनंदपदपनयुग । सुरुचिरमानसधार१ ॥ निखिलजंतु सुखकारिणी। जिनवाणीतुरधार ॥ पंचज्ञानपूजनतणो । कहस्युंविधि विस्तार २ ॥
॥ ढाल ॥
सकल क्रियानो मूलजे राजे । श्रद्वैतिक जसुमहिमा बाजै ॥ जेसऊ दुरित तिमिर हारे । लजित कोटि दिनंद अवतार ॥ १ ॥ ॥ उल्लालो ॥
श्वतार जसुमतिनाण । श्रुत पुनरवधि नाण बखानियें || मनज्ञाव परिणति विशद वेदन मनः पर्यय जानियें । वर अनंतानंत केवल पहिय गइ जाणए ॥ प्रतिपत्ति ने दै ज्ञान नाख्युं जिनपती जगनाणए ॥ १ ॥
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॥ ढाल ॥
विंशति पदमा अष्टम पद ए । जावें बंदन

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