Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१)
पां०ज्ञा०पू० ॥
१९३
करिलव तरिय ॥ नवपद सप्तमपद मननायो श्रीतीरथ पति श्रीमुखगायो ॥१॥
॥दोहा॥ योग्यदेशथित वस्तु जे । विषय प्रगट प्र तिनास ॥ इंद्रिय मन कारणकरी । नेद वतीस प्रकाश ॥ १ ॥ उपयोग क्रमतेक ह्यो । मति पूर्वक सुयनाण ॥ प्रथम पीठ जवि शरचिये । नमोनमो मइ नाण २॥
॥ढाल ॥ समकित उतपति कालै मतिश्रुत । लबधे होय समकाले । सुयनिस्सिय पुन रस्सुय नि स्सिय । नेदेसुय अजुवाले रे । नविका श्रीम इनाण तेवंदो वंदीने चिरनंदोरे न० समकित रसनो कंदोरेन० शिवतरु बीजनोवृंदोरे न. श्रीमइ० एशंकझी ॥१॥ अष्टा विंशतिधा सुयनिस्सिय । अत्युग्गहाईहारवाय३॥धारण ४ एचउपणइंद्रियमण। करि चउविंशतिथायें रेन त्री० ॥२॥ नयनमनोविन इंदियसा रू। वंजणुगह चउनेय ॥ उप्यइया १ वेणइयार कम्मिय ३ । पारिणामिय१ अवसेयरेन०मी० ३॥ उग्गह इक्कासमयईहावाय । शव मुऊसम
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212