Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 202
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥शारती। १९९ शारति करूंसारी जै० । अष्टाविंशति नेदकरी ने। मतिज्ञान राजै ॥ ध्यावतपूजत नविजन केरा। नवसंकट नाजै जे० ॥ १ ॥ नेद चतु ईशशथवा विंशति । प्रवचन पतिदाषे ॥ श्री श्रुतज्ञानकी महिमा जिनवर स्वमुखी नायें जे०॥२॥रूपीद्रव्य विषयि मर्यादा। करिश वधीसोहै। नेद षटक संख्यातीतीवा । नविज न मनमोहै जै० ॥३॥ तूर्यज्ञान मनपर्यवक हिये। नेदयुगम लहिये जै० ॥ ऋजुमति विषु लमति सरदहिये । न्यूनाधिक गहिये जै० ॥ लोकालोकांतर्गत वस्तुगुण पर्यवनासी । केव ल एक सहायअनंते नए निर्वृतिवासी जे०॥ ५॥ पंचज्ञानकी श्रारति करतां नवभारती बीजे जिमवरदत्त कुमर गुणमंजरी । तिम लक्तिकीजै ॥ वृहत् नहारक खरतर पति ॥ जिनहंस सूरीराया ॥ तत्पद कजमधुकरकंच ननिधि । शानंद वरताया ॥ ॥शारती॥ जय शरति ज्ञानदिनंदा शुनुनव पद पा वन सुखकंदा तीन जगतके नाव प्रकाशक पूरणप्रनुता परम शानंदा जय२० ॥१॥ म For Private And Personal Use Only

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