Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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॥ पां०कपू० ॥
१८७
टनयो है । निजातम गुणदीर पा० ३॥ प्रातिहार्य शतिशय जिनसंपद। नयोशनकूल समीर । देउपदेश नविकप्रतिबोधत । वचना तिशयगंजीर पा०॥ ४ ॥ लोका लोक प्रकास परमगुस । कहिनसकै मतिसीर ॥ पाठकवि जयविमल परमातम । प्रनुतापरमसुधीर पा० ॥५॥र्नशीपरम०ए०ज० श्रीम०केवलज्ञान कल्याणके अष्टदव्यं यजाम० स्वाहा ॥४॥
॥दोहा ॥ इंदादिकसुरसबमिली। तीननुबनसिरदार॥ सबदरसीसर्वज्ञनी । महिमाकरेंशपार १ ॥ ॥ शुतुलबिमलमिलो अखंगुणेनिलो॥ शतुलविमलप्रनुताप्रनुकीलखचोसठइंदउछ वधरेए॥ च्यारप्रकारकसुरसबमिलकरसमवसर णरचनाकरैए आ० ॥१॥ रजतकनकरत्नप्राकारें कनकरत्नमणिकंगुराए॥ वृक्षासोक सिंहासन सोनित । तीनकत्र चामरटुरैए शु० ॥२॥ दुन्दुनिप्रमुख श्रवण सुखदायक । गहिरसुरेवा जित्रघुरेए ॥ जानुप्रमाण पुष्पधन वरसत । जलजथलज विकसितसुरेए १० ॥३॥ सा धुसाधवी श्रावकश्श्राविका । इंदादिकसुरीसुर
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