Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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८६
॥ पां०क०पू० ॥
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|१ ॥ कंचन काष्ठ समानहै जाके । सुख दुख सम उपचारा ॥ कोऊ निंदत कोऊ पूजत । जिनजीहै अधिकारा रे सो० ॥ २ ॥ शिव सुख अरु नवसुख जनबांछे। वीतराग प्रन् प्यारा ॥ सूरबीर प्रनु दपकरणि चढ । मो हन मल्लपिडारा रे सो०॥ ३ ॥दायक संय मने शुनयोगें। अनुत्तर गुणगण धारा॥ पा ठकबिजय विमलकहै प्रनुके ॥ चरणकमलब लिहारारे सो० ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ घनघातीकरकर्मको। दयकरदायकज्ञान ॥ दर्शनलोकालोकको। प्रगटप्रकासीनान १॥ ॥ ठुमरी वसमन खितरोकुंक केतीर ॥
नजले श्रीमहावीर एचाल ॥ पायोप्रजुनवजलनिधि कोतीर पा०॥ अ तुलीवल वळवीर पा०॥ अनुत्तरजाकैसुमति गुपतिहै। अनुत्तरक्षमाधीर पा० ॥ १ ॥ मा देवार्यव अनुत्तरजाके । रोक्योआश्रव नी र ॥ संबरजोग कियानवि विणठी। रही ई
सुखसीर पा०॥२॥ घनघातीसब सत्रुवि नासी । केवलज्ञान सुधीर ॥ पूरनदर्शन प्रग
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