Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पां०क०पू० ॥ १८५७ - - निशदिन करत बिहारकम । मासु कामनिज ॥ धाम ॥१॥ ॥ सदगुरुजी सुनो मेरी अरजी ॥ एचाल ॥॥ जिनवरजी जगहिसकारी जि० ॥ जग व त्सल जगबंध जगत गुरू । जग नायक जय । कारी ॥१॥ कूर्मतणीपर गुप्तइंदी । अप्र' माद नारंसुचारी ॥ अतिशय धाम धामनि न जवीरज । वृषनपरै सुबिहारी जि० ॥ २॥। सूरवीर प्रजु सिंहतणीपर । कुंजर करम बि दारी ॥ अतिगंजीर सायरसम शोनित । सौ म्यलेश्या सुख कारी जि० ॥३॥ तेज दिनकर सम दीपत । हेम वरण मनुह सर्वसहन कारक धरणी पर। स्वच्छ हदयक। जधारी जि०॥४॥ ॥दोहा॥ शनतरधरसंयमकिया। करुवातीताजगंद ॥ वीतरागविचरैप्रवर । रत्नत्रयजगचंद ॥१॥ ॥ कुमरीने जादूशारा एचाल ॥ जाके रागद्वेष नया न्यारा रे। सोई क्या म सकल सुखकारा जा० ॥ बासीचंदन सम भन्नु जगमें । अपका रे उपकारारे जा० - - - - For Private And Personal Use Only

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