Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८४
॥ पां०क०पू०॥
(४
-
-
कोम ॥ जिनदीदा महोच्छवसमें । हाज रहोय तिणठोर ॥ १ ॥ इंदादिक सुरम सुरनर । पनुकुं करेंप्रणाम नरनारी शसी सदे । जयजय त्रिनुवन साम ॥ २ ॥ त जशानव संबरगहै । संयमन्नाव निधा न ॥ सबसंसार तजीकरी । नएशणगार प्रधान ॥३॥ * ॥ तेरीपूजावणी तेरसमें एचाल ॥
धारी धारी धारी जिननए संयमपदधा री। चरनकमल बलिहारी जि०॥ पंचसुमति धरतीन गुपतिकर। सबजीवां सुखकारी जि० १ ॥ जीतलिये उपसर्गपरी सह ॥ सत्रुसेना गणनारी । जयनैरव तेनिपकंपनए । निर्म मनिर हंकारी जि०॥२॥ कोधमान माया लोन किंचन। शाकिंचन व्रम्हचारी ॥ पुष्क रसम निरलेप जगत गुरू । निरंजन शवि कारी जि० ॥३॥ चेतन परप्रनु अप्रतिघा ती। खेसम निराश्रयारी ॥ खड्गीशंग परें एकाकी । प्रतिबंध विहारी जि० ॥ १ ॥
॥दोहा॥ रत्नत्रय परिग्रहकरी । मुक्तिमार्ग निराम
-
-
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212