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॥ पां०क०पू० ॥
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त्रिलवन माहिसुरूप । जन्मसमय जिनरा जनें ॥ वाजिन वजत अनूप । सुरनरकृत उबव जवें ॥१॥ ॥ रावणनीरत वणावेंहोनला एचालमें ॥
शाजशानंद बधाई रे ॥ देखोशा० ॥ ज यजय कारनयो जिनशासन ॥ सुरकुमरी ह रषाई रे दे० ॥ १ ॥ घरगौरी मंगलगावत मोतियन चोक पुराई रे ॥ ईत उपद्धव जय सब नागे । खार समुई जाई रे दे० ॥२॥ आज सनाथ नयोहै त्रिनुवन । जिनवर ज नम्या नाई रे ॥ शज अधिक जग हर्ष न यो है। धन धन मात कहाई रे दे० ॥३॥ जन्म महोच्छव करननकुं सब । दिशिकुमरी मिल आईरे॥ कर कदली गृह सुंदर रचना पावन कर कर लाई रे दे० ॥१॥ जिनज ननी जिनवर पय प्रणमी ॥ मस्तक आण चढाईरे । स्नान करावत उन्नय शरीरें ॥ तै लान्यंग कराई रे दे० ॥ ५॥ नूषण नूषित अंग विलेपन । देव दूष्य पहराई रे ॥ दर्प ण ले मंगल घट थापी । चामर जुगल डु लाई रे दे०॥६॥ पंचवरन के फूल सुगंधित
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