Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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१७८
पां०क०पू० ॥
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मेघ घटा घररायो रे दे० ॥ १॥ कालीघटा वरदामनि चमकत। दादुर मोर सुहायो॥ तिहि सुगंध पुष्प व्रज वरसत । मोतियन की फरलायोरे दे०॥५॥ प्रजुप्रतिमापंचतीर्थी नीतरसेंल्यावें। सिं हासणपरस्थापनकरैस्नात्रपूजाकरावें ॥
॥दोहा॥ शकजाय जिनवर गृहे। जिनजननी जिन राज ॥ प्रणमी श्री महाराजनी। नक्ति करै सुरराज ॥१॥ ॥ सुंदरनेम पियारो माई एचालमें ॥
तुमसुत प्रानपियारो माई तु०॥०॥ जग वत्सल जगनायक निरख्यो धन २ नाग हमारो माई तु०॥ १॥ धन जगजननी तु मसुतजायो । अधम उधारण हारो माई ॥ धन२ प्रगटलयो जगदिनकर। त्रिनुवन तारन हारो माई तु० ॥ २ ॥ सबसुर चाहत स्ना त्र करनकुं। सुरगिरि प्रनुजी पधारो माई॥ करजोमी प्रनु रजकरतऊं। सब जनकाज सुधारो माई तु० ॥३॥ मैंसेवक तुमसुत च रननको । शायोक्तं अधिकारो माइ ॥ इंड
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