Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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पांक०पू० ॥
॥दोहा॥ सुरकृतउच्छव अति अधिक। नये अनंतर प्रात ॥ मातपिता उच्छवकरें। निज कल कमविष्यात ॥१॥ पारनहीधनकेजहां। शगणित नरेनंकार॥ दानमनो वंछित दिये । दयावंत दातार
॥ गात्रलूहें एचाल ॥ जिनजन्म महोच्छव रंगसुंरे । नयेप्रातक रतउछ रंगसुंरे ॥ हां रेदेवा रंगसुं॥ नपउच्छ व करै अतिघणुं ॥ १ ॥ पुत्रजनम कुलकमक रै रेदेवा । जगजस कीरतविस्तरें वि० । घ रघरउच्छव रंगमें ॥ २॥ सुरवधुमिल सुरसं गसुंरे ॥ करेंनाटक नवनव रंग सुं रे रं ॥ हां रे बाललीला जिनसंगमें ॥ ३ ॥ रूपाति शये शोलतारे देवा । इंदादिक मन मोहता रेवा०मो हां० । विमाप्रनु विस्मयवती ४ परमप्रमोद प्रवीणतारे देवा । सुरकीफा १ तिशयवता रे देवा शु०॥ वैकिय शक्तिसमे लसुं रे देवा ॥ ५ ॥गावतगीत उमंगसुं रे देवा वाजिन नवनव रंगसु रे देवा अ०॥ वजित अहोनिशिसंगसुंरे ॥६॥
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