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॥ विं० स्या० पू० ॥
(२)
म्यारे बाला । अव्याबाध रूपी रे ॥ ६ ॥ जिनवर पिणप्रण मैं सदारे वाला। एहनें दीक्षा प्रवसरे रे । तिण प्रभुपद गुणमालिका रे बा ला । कंठे धरिये सुपरै रे ॥ ७ ॥ हस्ति पा ल नवि जगतिसुं रे वाला | सिद्ध परम पद जजिने रे । पद श्री जिन हरखे लह्यो रे बा ला । पर गुण परणति तजिनें रे ॥ ८ ॥ ॥ काव्यं ॥
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लोगग्गनागोपरि संठियाणं । बुझाणसिद्धा णं मणिंदियाणं । निस्सेस कम्मरकय कारगा णं । णमो सया मंगल धारगाणं ॥ ९ ॥ मुँजी श्री सिद्धभ्यो नमः ॥
॥ इति द्वितीय पदे श्री सिद्ध पूजा ॥
॥ दोहा ॥
पदतृतीय प्रबचन नमो | ज्युनजमो संसा र ॥ गमो कुमति परिणमनता । दमो करण जयकार ॥ १ ॥ जैसे जलधर वृष्टि तें । ल फल्द विकसाय ॥ तैसें प्रवचन शक्तितें । शु न परिणति उलसाय ॥ २ ॥
खि
॥ श्रीराग जिनगुणगानंश्रुतच्यमृतं एचालमै ॥
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