Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 174
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (१) ॥ पां०क०पू० ॥ वर्णवं । गुणशास्त्र परंपरधारए ॥ २ ॥ ॥ दोहा ॥ शासन नायक जगधणी । त्रिभुवन पति परमेस || पर उपगारी प्रभुतणा । गुण गावत सवेस ॥ १ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७१ || ढालतेहीज || risोरेदेवा | वीसथान करि सेवना वां ध्युंजिननाम प्रधानहे । हांहोरेदेवा दिव्या मरसुखावें ॥ प्रायें प्रनुपुन्य प्रमाणए 9 हांहोरे देवा निरमल तरवरज्ञानना। धारक कारक शुनयोगए ॥ हांहो देवा शब्दचरणरस गंधना । शुनफरस तणा वरोगहे ॥ ४ ॥ हांहोरेदेवा शाश्वत सिद्धायण तणा । नितउ च्छवकरत सुरंगए || हांहोरे वाला बालचंद पाठक कहै । नितमंगल होतसुचंगहे ॥ ५ ॥ ॥ दोहा ॥ पुन्य पूर्वभव प्रतुतणो । प्रगटो प्रगट प्रभाव || सुरकुमरीनित प्रतिकरें नाटक For Private And Personal Use Only नवनवभाव ॥ १ ॥ || पूर्व मुखसावनं एचाल ॥ शुरु निजदर्शनें करियगुणकर्सना । जिन

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