________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
(१०)
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ विं० स्या० पू० ॥
999
श्रागम में | विनयतणा सुविसेसें ध्या० ॥ १ ॥ तीर्थंकर १ सिट २ कुल ३ गण ४ संघा ५ किरिया ६ धर्म ७ वरनाणा ८ ॥ नाणी ९ छाचारिज १० मुनिथविरा ११ । पाठक १२ गणि १३ गुणजाणा ध्या० ॥ २ ॥ ए रिहादिक तेरस १३ पदनो । विनय करें जेनावें । ते तीर्थंकर पद अनुविनें । मृतपद सुखपावें ध्या० ॥ ३ ॥ जिम कंचन मैं मृदुगुण लालेँ । नहीय कालिमा पावें ॥ तिण ए सकल धातु मैं उत्तम । नाम कल्पाण कहावें ध्या० ॥ ४ ॥ तिम विनयी मैं बै मृदुता गुण कुमति कठि नता नासें । कृन्नादिक लेन्यानी मलिनता जाये विनय गुण जासे प्या० ॥ ५ ॥ दोय स हस अधिक चिऊत्तर । देववंदन निरधा रो। गुरु वंदन विधि च्यार से बाणुं ४९२ भेद करी उरधारो ध्या० ॥ ६ ॥ तीर्थकरादि कनो मन रंगें । विनय चरण शुन ध्यायो ॥ धन नामा जविजन शुभ योगें। पद जिन हर्षे पायो ध्या० ॥ ७ ॥
For Private And Personal Use Only
॥ काव्य ॥
आणंदया सेसजगज्जणस्स । कुंदिंदु पादा