Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५०
चौ. जि० पू०॥
(२२)
शवर कमल रसलोनी मधुकर ॥ कजगतग लगलजावेरे वा० । परकज निजगुण लच्छि पात्र है ॥ पदकज संपद देवे रे । तातें पद शिवचंद जिणंद के ॥ अहनिशि सुरनर सेवे रे श्री० ॥ ३ ॥ झी परम० अनं० नमिजि में० जलं० नैवे० यजामहे स्वाहा ॥ २१ ॥
॥दोहा॥ घावीसमजिन जगगुरू । व्रम्हचारि बिख्यात इणबंदन चंदन रसैं । पापताप मिटजात १ ॥ राग गाजलूहै जिनमन रंगसुं०एचाल॥
नेमि जिणंद उर धारी रे वाला। विषय कषाय निबारिये रे वाला। बारिये रे हारे याला ॥ ए जिननें न बिसारिये रे ॥१॥ अलधर जिम प्रन्नु गरजता रे बाला। देशना शमृत बरसता रे बाला दे० बरसता हां रे० तविक मोर सुण उलसता रे बाला ॥२॥ समवसरण गिरि पर रह्यारे बाला । नामंझ लचपलावह्यारेवा० ॥ सुरनर चातकऊमद्या रे॥३॥ बोधबीज उपजावियो रे घाला। विउरक्षेत्र बधावियो रे बालाज०बनवि
फलपाबियो रे॥४॥र्नीपरम०
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212