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॥नं०श्च० पू०॥
मंदिर जिन महाराज ॥ वसुविध पूजा ये स दा। पूजो नविक समाज ॥ ७॥ पश्चिम अंजन शैलने । चउदिशि दधि मुखधार ॥ चउमंदिर जगनाथ की । पूज करो सुखकार ८॥ पश्चिम ईशानादिकै ॥ विदिशें जगहि त काज । अफ रतिकर गिरि जिनप्रतें ॥ अरचं जगदाधार ॥ ९॥ उत्तर दिशि अंजन गिरी। मंदिर गत जगराय ॥ अष्ठविधार्चन से नविक । शरचो जीउ सुखदाय ॥१०॥ उन्तर अंजनशैलने । चउदिशि दधिमुखनाम चउमंदिर तीर्थेशनें । श्ररचो शुन परिणाम ११॥ उत्तर ईशानादिकें। विदिश रुचिराका र। वसु रतिकरगिरि जगविनू ॥ पूजो अरति विदार ॥ १२ ॥ सकल संघ वलि जेठमल ॥ कोठारी चितचंग ॥ इनके आग्रहसे करी ॥ पूजा अतिहि सुरंग ॥ १३ ॥
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॥ इति श्री नंदीश्वरजीकी पूजासंपूर्णा ॥
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