________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
११४
॥ विं० स्था० पू० ॥
जनि कर । सुर गण में सुरराय । तिम सऊ व्र त शिर सेहरो । ब्रम्ह चरिज कहिवाय ॥ २ ॥ ॥ रागकाफी जंगला जला प्रनुगुण वाल्हाहो ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
(१२)
नवनयहरणा शिव सुखकरणा । सदानजो ब्रम्हचाराहो ज० ॥ शीलविबुध तरुप्रतिपाल नकों । कही जिनवर नववाराहो ज० ॥ १ ॥ दिव्यौदारिक करण करावण । अनुमति विष य प्रकारा हो ज० ॥ त्रिकरणजोगें ये परिहरि ये । नजिये नेद दारा हो न० ॥ २ ॥ कन क कोमिनो दान दिये नित । कनक चैत्यकर तारा हो ज० ॥ येहथी ब्रम्हचरिज धारकनो । फल गणित अवधाराहो ज० ॥ ३ ॥ सहसचो रासी श्रवण दानफल । नाम ब्रम्हव्रतफल सारा हो न० ॥ विजयसेठ विजयासेठाणी । उन्नय पक्ष ब्रम्ह धारा हो ज० ॥ ४ ॥ जये सुदर्शन से ठशीलसें | मुगतिबधू जरताराहो ज० ॥ सह स स्टार शीलांगरथ धारा । धार करो निस तारा हो ज० ॥ ५ ॥ सिंहादिक वसुजय तरु जंजन | सिंधुर मदमतवारा हो ज० ॥ कलह कारि नारद रिषिसरिखे । तस्योजवजलधि