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(८)
॥ वि० स्था० पू० ॥
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नही श्री सर्व साधुन्यो नमः ॥ इति सप्तम पदे श्री साधु पूजा ॥
॥दोहा॥ बिमल नाण खर किरण किय । लोका लोक प्रकास ॥ जीत लही निज तेज से। जिण अनंत रविनास ॥ १ ॥ सज संशय तम अपहरे । जय २ नाण दिणंद ॥ नाण चरण समरण थकी विलय होय दुख दंद ॥ ॥राग घाटो मेरो मन बस करलीनो ॥
॥जिनवर प्रन्नु पास एचाल ॥
नावें ज्ञान बंदन करिये। शिव सुख तर कंद ॥ जिन चन्द पद गण धरिये वरिये प रम शानंद ना० ॥१॥ मतिनाण १ त २ पुनरवधि ३ मन परजय जाण ४ ना० । लो कालोक नाव प्रकासी। वर केवल नाण ५ ना० ॥ २॥ पंच ५ ए इकावन ५१ नेर्दै । कह्यो जिनवर जान ॥ जग जीव जन्ता छेर्दै ज्ञानामृत रस पान ना० ॥ ३ ॥ बिन ज्ञा न धीकी किरिया । होय तसुफल ध्वंस ॥ नदानद प्रगट ये करिये। जिम पय जल
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