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॥ नवपद शारती ॥
॥ बिमल केवल० नी तपसे ॥
॥ इति तप पद पूजा ॥ ९ ॥
॥ इति वृहनवपद पूजा संपूर्णा ॥
॥ अथ नवपद जी की आरती ॥ जय जय जग जन बंबित पूरण सुरतरु अभिरामी । प्रतम रूप बिमल करतारक अनुभव परिणामी ज० ॥ १ ॥ जय २ जग सारा । नविजन धारा ॥ रति पार उतारा | सिद्ध चक्र सुख कारा ज० ॥ २ ॥ जग नायक जग गुरु जिणचंदा । जज श्री नग वंता । तमराम रमा सुख जोगी । सिद्धा ज वंता ज० ॥ ३ ॥ पंचाचार दिये श्राचारज युगवर गुण धारी । धारक बाचक सूत्र रथना पाठक जव तारी ज० ॥ ४ ॥ सम दम रूप सकल गुण धारक मोटा मुनि राया दरसण नाण सदा जय कारक | संजम तप गाया ज० ॥ ५ ॥ नवपद सार परम गुरु जाषै । सिद्धचक जयकारी । इह नव पर
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