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॥ बोटी नवपद०॥
. सकलविषय विषवारनें । शतमध्यानेरा तारे । उपशम रसमांकीलता । निजगुणज्ञा ने माता रे ॥ १ ॥हित धरि मुनिपद वंदिये क० आं० । रतनत्रया शाराधतां । षटका या प्रतिपाल रे। पंधी जी सदा । जिन मारग उजवाले रे हि० ॥ २ ॥ गुण सत्ता वीस शलंकस्था। पंच महाव्रत धारी रे । द्वादशविध तपशादरै । चिदानंद सुखकारी रे हि० ॥ ३ ॥ नवविध व्रम्हचरिज धरै । करम महा नट जीत्या रे । एहवामुनि ध्यावें सदा । तेनरजगत विदीता रे हि ॥ १ ॥
॥श्लोक ॥ व्याख्यादिकर्मकुर्वाणान्। शुनध्यानैक मा नसान् ॥ उदक्पत्रगतान्नित्यं साधून्बंदामि सु व्रतान् ॥ १॥ वैराग्यमंतर्वचसिप्रसिद्धं । स त्यंतपोछादशधाशरी रे येषामुइक् पतगतान पवितान् । साधून् सदातान् परिपूजयामि २॥ नही सर्वसाधुन्यो नमः ॥ इति साधु पूजा ॥५॥
॥ श्थ दर्शन पद पूजा ॥
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