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॥ बोटी नवपद० ॥
रे।शाचारिज पदवंदीये क० । सारण वारण चोयणा । पमिचोयण चौसिद्धारे। नव्यजीव समझायवा । देवाने ते दहा रे शा० ॥ १ ॥ जिनवर सूरिज शाथम्यां। परतिख दीपक जे हारे । सकल नाव परगट करें। ज्ञानमयी ज सु देहा रे शा०॥ २ ॥ विधिसुं पूजा साचवें ध्यावे निज हित जाणी रे। पावें लघुतर का लमा आचारिज पद प्राणी रे शा० ॥ ३ ॥
॥श्लोक ॥ स्थापयामि ततः सूरीन् दक्षिणेस्मिन् दले मले चरतः पंचधाचारं षट्त्रिंशत् समुणैर्यु तान् ॥ १ ॥ सूरीन् सदाचाररतां इचसारा नाचारयंतः स्वपरान्यथेष्ठं उग्रोपसगैक नि वारणार्थ मन्यर्चयाम्यक्तगंधधूपैः ॥ २ ॥ ही सूरिज्योनमः॥ इति शचार्य पद पूजा॥
॥ श्थ उपाध्याय पूजा ॥
॥दोहा॥ गुण अनेक जग जेहना । सुंदर सोनित गात्र ॥ उवझायापद शचिये। अनुन्नव रस नो पात्र ॥ १ ॥
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