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(१५)
॥ सतरहलेदी ॥
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रसाल रे । देवाकर० । काम धूमावली करिय धूसर । कलष पातिक गाल रे स०॥१॥ अर्थ गति सूचंत नविकुं । मघ मघे किरणालरे । चवदमी वामांग पूजा। दीयें रयण विशालरे। शारती मंगल थाल रे । मालवी गौमी ताल रे स० ॥ २ ॥
॥ इतिधूप पूजा १४ ॥
॥ अथ गीत पूजा ॥
॥दोहा॥ कंठ नलै शालाप कर । गावो प्रनुगुणगी त ॥नावो श्रधिकी नावनां । पनरमि पूजा प्रीत ॥१॥
॥श्रीराग ॥ यद्वदनंत केवलमनंत फलमस्ति । जैनगुण गानं । गुण वर्ण नाद वादी मात्रा नाषा लयै युक्तं ॥१॥ सप्तस्वर संगीत स्थानै र्जयतादि ताल करणैश्च । चंचुर चारी चारै गीतंगानं सुपीयूषं ॥ १ ॥
॥श्रीराग ॥
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