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॥ सत रहनेदी ॥
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॥ थ कला ॥
मणि गुण जिनके सबदिन । तेज तरणि मुख राजै । कवि शतक आठ थुणत शक स्तव । थुयकय राग मह बाजै ० ॥ १ ॥
॥ आरती करनी ॥
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हलपुर शांति शिव सुख दाई । सो प्रभु नव निधि रिध सिद्धि वाजै सतर सुपूज सुविधि श्रावक की । जणी मैं जगति हित काजे ज० ॥ २ ॥ श्री जिन चंद्र सूरि खर तर पति घर मन वचन सुराजै । संबत सोल अठा र श्रावण धरि । पंचमि दिवस समाजै न० ३ ॥ दया कुशल गणि अमर माणिक्य गुरु । तास पसाय सुविधि यऊ गाजें । कहै साधुकीरत करत जिन संस्तव । सब लीला सुख साजें ज० ॥
॥ इति सतरहनेदी पूजा संपूर्णी ॥
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