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॥ सतरहलेदी॥
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॥राग आसाउरी॥ देखी दामा कंठ जिन अधिक एधति नंदै चकोरकुं देषि २ जिम चंदै पंचविध वरण र ची कुसुमाकी जैसी रयणा वलिसु हमंदै दे०॥ बहीरे तोफर पूजा तब कर धूजे । सब अ रिजन जइ २ बंदे । कहै साधुकीरति सक ल आसा सुख । नगति २ जेय जिण वंदे दे०॥२॥
॥इति माला पूजा ॥६॥
॥ अर्थ वर्ण पूजा
॥दोहा॥ केतकि चंपक केवफा । सोनै तेम सुगात चाढो जिम चढतां ऊवे सातमियें सुखसात १
॥राग केदारो गोडीमे॥ कुंकुम चरचित विविध पंच वरणका कु सुम सुं हे । कुंद गुल्लाल सुं चंपको दमण को जासु सुंए। सातमी पूजमें अंग आलिंगिये ए अंग शालिंग मिस मानवी मुगति शालिंगि ये ए॥१॥
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