Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
जोयणसहस्साई निक्भेणं दसजोयणाई उब्वेहेणं अच्छे सण्ठे रययामयकूछे' द्वे योजनसहस्त्रे विष्कम्भेण दशयोजनानि उद्वेधेन अच्छः लक्ष्णः रजतमयकूलः, अथास्य सोपानादि वर्णनायाह- 'तल्स णं' इत्यादि 'तस्स णं तिर्गिच्छिदहस्स चउद्दिसिं चत्तारि 'तिसोवाणपडिवगां पण्णत्ता' तस्य पुष्परजोहृदश्य चतुर्दिश दिक्चतुष्टये चत्वारि त्रिसोपानप्रतिरूपकाणि सुन्दराणि त्रिसोपानानि प्रज्ञशानि 'एवं जाव' एवम् अनेन प्रकारेण इदे वर्ण्यमाने यावत् परिपूर्णा 'आयामधिक्खंभःबहूणा' आयायविष्कम्भविधृता (विहीना ) 'जा चैव महापउमदरस वत्तव्यया सा चैव तिर्मिच्छदारस वि' यैव महापत्रस्य वक्तव्यता सैव पुष्परजो हृदस्यापि 'वत्तव्यया' वक्तव्यता, एतदेव स्पष्टीकर्तुमाह- 'तं चैव पउमदहप्पमाणं तदेव पद्द्महद प्रमाण मित्यादि - तदेव महापद्महृद्गतमेव प्रमाणं धृतिदेवी कमलानां प्रमाणम्, विंशत्युतरकशताविक पञ्चाशत्सहस्राधिकविंशतिललोत्तरैक कोटिरूपम् १२०५०१२०, अन्यथाऽत्र इसका आयाम चार हजार योजन का है और विक्रम्भ दो हजार योजन की है उद्वेध इसका दस योजन का है यह आकाश और स्फटिक के जैसा निर्मल हैं चिकना है इसका कूल रजतमय है मूल में " तिमिच्छि " ऐसा निपाल होता है अथवा 'तिमिठि' यह देशी शब्द है (तस्स णं तिगिछिद्दहस्स चउदिति चतारि तिसोवाणपडिख्या पण्णत्ता) उस तिगिंधि ब्रहकी चारों दिशाओं में त्रिसोपान प्रतिरूपक कहे गये हैं (एवं जाव आयामविक्खंभ विहगा जा चैव महापउम हहस्स वक्तव्या सा चेव तिर्गिच्छिद्दहस्त वि वत्तव्या, तं चैव पउमद्दहपमाणं अट्ठो जाव तिगिंधि वण्णाइ) इस सूत्र पाठ में यावत् शब्द सम्पूर्णता का वाचक हैं अतः आयाम और विष्कम्भ को छोड़कर जो महापद्महूद की वक्तव्यता कही गई है वही तिमिदि की भी वक्तव्यता जाननी चाहिये इस तरह जैसा प्रमाण महापद्महद्गत कमलका कहा गया है - अर्थात् महापद्महूदगत हमलों का प्रमाण संख्या १ करोड २० लाख ५० हजार एक सौ २० कहा गया है सो यही प्रमाण છે અને વિષ્ણુભ એ હુંજાર ચાજન જેટલે છે. એના ઉદ્વેષ દશ ચેાજન જેટલે છે. એ આકાશ અને સ્ફટિક જેવા નિર્માળ છે અને એ ચીકણા છે. એના તટા રજતમય છે. भूसभां 'तिगिछिहद' येवो या छे. तो पुष्परन्ना स्थानमा 'तिगिच्छि' थेवेो नियात थाय छे. अथवा 'तिगिछि' मे देशी शुद्ध छे. 'तस्स णं तिगिछिद्दहस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिनगा पन्नत्ता' ते तिणिछिद्रहनी थामेर त्रिसोपान अति इस छे ' एवं जाव आयाम त्रिक्वंभविणा जा चैव महो पउम्दहस्स वत्तव्वया सा चेव तिमिच्छि हम्स वि वक्तव्या, तं चैव परमद्दहपमाणं अट्ठो जात्र तिगिंलि वण्णाइ' को सूत्रपाठभां ચાવત્ શબ્દ સતા વાચક છે. એથી આયામ અને વિષ્ણુભને ખાદ્ય કરીને જે મહા પદ્મદની વક્તતા સ્પષ્ટ કરવામાં આવેલી છે, તેજ તિગિ હિાની પણ વક્તવ્યતા છે. આ પ્રમાણે જે રીતે મહાપદ્મહ્દગત ફમળાનું' પ્રમાણ કહેવામાં આવેલ છે, એટલે કે મહા