Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 701
________________ દર प अनया रीत्या पुष्करोदात् तृतीयसमुद्रात् क्षीरोदसमुद्रात उदकादिकं गृह्णन्ति अत्र देवेंः लीगेकसमुद्रे क्षीरोदकादि ग्रहणानन्तरं यस्मात् वारुणीवरमन्तरागुक्त्या पुष्करीदे जलं गृहीतम् । तस्मात् वारुणीवर चारिणोऽग्राह्यत्वादिति सम्भाव्यते. 'जाब भर हेरवयाणं मागा इनित्यानं उदगं मट्टिअंच गिण्डति अत्र यावत्पदात् 'समयवित्ते' इति ग्रायम् नवाच समयक्षेत्रे मनुष्यक्षेत्रे भरतैरवतयोः पुष्करवरद्वीपार्द्धसत्कयोः मागधादीनां तीर्थानामुद मृदिकां च गृहन्ति 'गिहिता' गृहित्वा ' एवं गंगाईणं महाणणं जाव' एवमिनि समक्षेत्र पुष्करवरही पाईसत्कानां गङ्गादीनां महानदीनाम् आदिशब्दात् सर्वनदीनां परिग्रहः गावत्पदात् उदमयतटवर्तिनीं मृत्तिकां च गृह्णन्ति इति ग्रावर 'चुल्लहिमताओ राज्यअरे सकेसम सव्वमल्ले जाव सव्वोसहीओ सिद्धत्य गिति' श्रमियराः सर्वान तुरान् पावक्रव्याणि, सर्वान् गन्धान् वासादीन् सर्वाणि माल्यानि ग्रथितादि भेदभिन्नानि 'सर्वा महीपत्र: सिद्धालिया यहां यावत्पद से कुमुद आदि को का ग्रहण हुआ है 'एवं पुरुवरोदाओ जाव भररचयाणं मागहाइतित्थाणं उद्गं महिअंच गिण्हुति' इसी तरह से पुष्करोदक नामके तृनीय समुद्र से उन्हों ने उदकादिक लिया, फिर मनुष्य क्षेत्रस्थित पुष्कर वरीपार्थ के भरत ऐरवत के मागधादिक तीर्थों में आकर उन्हों ने वहां का जल और मृत्तिकाली 'गिन्हित्ता एवं गंगाईणं महाणईणं जाव चुल्लहिमवंताओ सव्वतुअरे सञ्चपुष्फे सञ्च गंधे सत्र मल्ले जाव सशेसहीओ सिद्धत्थए व गिति २ प्त्ता पउमद्ददाओ दहोअगं उप्पला दीणिअ एवं सव्व कुलपन्वएस वट्टवेअद्वेषु सव्वमहद्द हेसु' वहां का जल और मृत्तिका लेकर फिर उन्होने वहां की गंगा आदि महानदियों का जल यावत् उदक एवं उभय तटकी मृत्तिकाली तथा क्षुद्रहिमवान् पर्वत से समस्त आमलक आदि कपाय द्रव्यों को, भिन्न २ जाति के पुष्पों को समस्त गन्ध द्रव्यों को ग्रथितादि भेदवाली मालाओं को, राजहंसी आदि महौषधियों को और सर्पपों को लिया पद्मद्रह से ब्रहोदक "एवं पुक्खरोदाओ जाव भरद्देरवयाणं मागहाइतित्याणं उदगं मटिअ गिव्हुति' मा प्रभा પુષ્કરેાદક નામક તૃતીય સમુદ્રમાંથી તેમણે કાર્ત્તિક લીધાં. પછી મનુષ્ય ક્ષેત્ર સ્થિત પુષ્કરવર હીપાના ભરત અરવતના માગધાદિક તીર્થોમાં આવીને તેમણે ત્યાંથી पाणी ने मृत्ति सीधां. 'गिण्हित्ता एवं गंगाईणं महाणईणं जाव चुल्ल हिमवताओ सव्वतुअरे सव्त्रपुष्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले जाय सव्त्रोसहीओ सिद्धत्थए य गिति गिव्हित्ता पउमहाओ दहोअगं उप्पलादीणि अ एवं सत्र कुलपत्र्यासु वट्टवेअद्धेसु सत्र महરહેલું' ત્યાથી પાણી અને મૃત્તિકા લઈને પછી તેમણે ત્યાંની ગંગા વગેરે મહા નદીએનુ પાણી યાવત્ ઉદક તેમજ ઉભય તટની સ્મૃત્તિકા લીધી. તથા ક્ષુદ્ર હિમવાન પવથી સમસ્ત આમલક આદિ કષાય દ્રવ્યાને, ભિન્ન-ભિન્ન જાતિના પુષ્પોને, સમસ્ત ગ ચૈાને ગ્રથિતાદિ ભેદવાળી માળાને, રાજસી વગેરે મહૌષધિને અને સપ્ને

Loading...

Page Navigation
1 ... 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803