Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 740
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः रु. ५१ अभिषेकनिगमनपूर्वकमाशीर्वादः | ওহৎ अञ्जलिं कृत्वा ‘पयओ' प्रयतः-यथा स्थानमुदात्तादि स्वरोच्चारणेषु प्रयत्नवान् सन् 'अट्टस य विसुद्धगंथजुत्तेहिं अष्टशतविशुद्धग्रन्थयुक्तैः, अष्टोत्तरशतप्रमाणे विशुद्धेन ग्रन्थेन युक्तैः 'महावितहिं' महावृत्तेहि' महावृत्तैः महाकाव्यैः यद्वा महाचरित्रैः 'अपुणरुत्तहिं' अपुनरुक्तैः 'अत्थ जुत्तेहि' अर्थयुक्तैः, चमत्कारिव्यङ्गयुक्तः, 'संथुणड' संस्तौति तस्य संस्तवनं करोति 'संथुणित्ता संस्तुत्य 'वाम जाणुं अचेई' वामं जानुम् अञ्चति, उत्थापयति 'अचित्ता जाव' अश्चित्वा, उत्थाप्य यावत्करणात् 'दाहिणं जाणुं धरणिअलंसि निवाडेइ' दक्षिणं जानुं धरणी. तले निपातगति, स्थापयति इति ग्राह्यत 'करतलपरिहियं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी' करतलपरिगृहीतं मस्तके अश्वलिं कृत्वा एवम् वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् यदवादीतदाह णमोऽत्थुते सिद्ध वुद्धं इत्यादि णमोत्थुते सिद्धबुद्धनीरयसमणसामाहियए मत्तसमजोगि सल्लगत्तणणि भयणीरागदोसणिम्ममणिरसगणीसल्लमाणमूरण गुणरयण सीलसागर मर्णतमप्पमेय भविध धम्मवरचाउरंतचकवट्टी णमोऽत्थुते अरहओत्ति कटु एवं बंदइ णमंसई' हे सिद्ध 'हेवुद्ध' ज्ञानतत्व 'ते तुभ्यं न मोऽस्तु अत्र सर्वाणिपदानि सम्बोधने बोध्यानि बनाकर और उसे मस्तक के ऊपर करके १०८ विशुद्ध पाठों से युक्त ऐसे महा. काव्यों से जो कि अर्थ युक्त थे-चमत्कारिक व्यङ्गकों से युक्त थे-एवं अपुनरुक्त थे स्तुति की 'संथुणित्ता वासं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता जाव करयल परिग्गहियं मत्थए अंजलिं कह एवं क्यासी स्तुति करके फिर उसने अपनी वायी जानुको ऊंचा किया और ऊंचा करके यावत् दोनों हाथ जोडकर मस्तक पर उन्हें अंजलिरूप में करके इस प्रकार से उसने प्रभुको स्तुति की-यहां यावत्पद से 'दाहिणं जाणुं धरणियलंसि निवाडेइ' इस पाठका संग्रह हुआ है 'णमोत्थु ते सिद्ध बुद्धणीरयसम्ण सामाहि समत्त समजोगि लल्लगत्तण जिम्भय णीरागदोसणिम्ममणिस्संगणीसल्लमाणमूरणगुणरयणसीलसागरमणंतमप्पमेय भविय धम्मवरचाउरंत चस्कवही णमोत्थु ते अरहओ त्ति कटूटु एवं वंदह णमंसई' हे દશે આંગળીએ જેમાં પરસ્પર સંયુક્ત થયેલી છે, એવી અંજલિ બનાવીને અને તે અંજલિને મસ્તક ઉપર મૂકીને ૧૦૮ વિશુદ્ધ પાઠથી યુક્ત એવા મહા કાવ્યથી કે જેઓ અર્થ યુક્ત હતા, ચમત્કારી વ્યંગ્યાથી યુક્ત હતા. તેમજ અપુનરુક્ત હતા–તેણે સ્તુતિ કરી. 'संथुणित्ता वाम जाणु अंचेड, अंचित्ता जाव करयलपरिग्गहिय मत्यए अंजलिं कद एवं વાણી’ સ્તુતિ કરીને પછી તેણે પોતાના નામ જાનુને ઊંચો કર્યો. ઉંચે કરીને યાવત્ બને હાથ છેડીને, મસ્તક ઉપર પિતાના હાથોની અંજલિ રૂપમાં બનાવીને આ પ્રમાણે स्तुति ४ मही यावत् ५४थी 'दाहिणं जाणु धरणियलयसि निवाडेइ' मा पा स. हीत या . णमोत्थुते सिद्ध बुद्धणीरय समणसम हिअ समत्त समजोगि सल्लगत्तण णभय णीराग दोसणिम्ममणिस्संग णीसल्लमाणमूरण गुणररणसीलसागरमणंत मप्प मेय भविय धरमवरचाउरंतचक्कवट्ठी णमोत्थुते अरहओ त्ति कटु एवं वंदहे णमंसई ज० ९२

Loading...

Page Navigation
1 ... 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803