Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 761
________________ ७५० जम्बूद्वीपप्रतिस्त्र मध्यवर्ति प्रदेशानां लवणसमुद्रादतिदूरस्थिततया लवणसमुद्रसंस्पर्शसंभवनाया असंभवात् प्रश्नोऽनुपपन्न एव स्यादिति । 'लवणसमुदं पुढा' लवणसमुद्रं स्पृष्टवन्तः जम्बूद्वीपसंवन्धि चरमप्रदेशानां लवणसमुद्रेण सह संस्पर्शी विद्यरो नरेति कास्वा प्रश्नः भगवानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता गोपमा । उन्त, गौतम ! 'पुढा' स्पृष्टाः, अर्थात् जम्बूद्वीपस्य ते चरमप्रदेशा लवणसमुद्राभिमुखास्ते लवणसमुद्रे स्पृष्टवन्त इत्यर्थः अथ संप्रदायादिना द्वीपानन्तरीयाः समुद्राः समुद्रानन्तरीयाश्च द्वीपाः तेन ये यदनन्तरीयास्ते तत्संस्पर्शिनः इति सुज्ञातेऽपि प्रष्टव्येऽर्थे यत् प्रश्न विधानम्, तदुतर सूत्रे प्रश्न वीजाधानायेति "तेणं भंते ! कि जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे' ते खल्ल भदन्त ! कि जम्बूद्वीपो द्वीपः लवणसमुद्रः, हे मदन्त ! लवणसमुद्रस्पृष्टाः जम्बूद्वीपस्य चरमप्रदेशाः किं जम्बूद्वीपस्येत्येवं व्यपदेश्याः किम्वा लवणसद्रसंवद्धहैं यदि ऐसा न खानाजावे तो फिर जम्बूलीप के मध्यवर्ती जो प्रदेश हैं वे तो लवणसमुद्र से अति दूर स्थित है इस कारण उनके द्वारा लवण समुद्रका छूना ही असंभव है अतः फिर यह प्रश्न ही नहीं उठ सोगा इल प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-"ना !, गोथमा! हां गौन! जम्बूलीप के जो चरम प्रदेश लवण समुद्र के अभिमुख है वे लक्षणसमुद्र को छूते हैं जब की ऐसी मान्यता है किद्वीप को घेरे हुए समुद्र हैं और लद्र को धेरे हुए डीप हैं तो फिर इस मान्यता से ही यह पात सिद्ध होती है कि जो जिले घेरे हुए हैं वे उसे छूमी रहे है फिर भी यहां पर जो ऐसा प्रश्न किया गया है वह उत्तर सूत्र में प्रश्न वीज के आधान के निमित्त किया गया है 'तणं मंते ! किं जंबुद्दीचे दीवे लवगसनुद्दे' अथ गौतम ने प्रभु ले ऐमा पूछा है-शि हे भदन्त ! लषण समुद्र को छूने वाले जो जम्बूद्वीप के चरमप्रदेश है वे क्या जम्बूद्वीप के ही कहलायेंगे या लवण समुद्र से संबद्ध हो जाने के कारण लवणासुद्र के कहलायेंगे। ગૃહીત થયા છે તે લવણ સમુદ્રના સહચરથી ગુડીત થયા છે. જે આ પ્રમાણે માનવામાં ન આવે તે પછી જંબૂઢીપના મધ્યવર્તી ભાગમાં જે પ્રદેશ છે તે તે લવણસમુદ્રથી અતિ દૂર સ્થિત છે. આથી તેમના વડે લવણસમુદ્રને સ્પર્શવું જ અસંભવ છે. એથી આ જાતને प्रश्न स्थित यो नथी. ये प्रश्नना याममा प्रभु ४३ -हंता, गोयमा ! i ગીતમ! જબૂદ્વીપના જે ચરમ પ્રદેશે લવણસમુદ્રાલિસ્બ છે. તે લવણસમુદ્રને સ્પર્શે છે. એવી માન્યતા છે કે પાષ્ટિત સમુદ્રો છે અને સમુદ્રાષ્ટિત દ્વીપે છે. તે પછી આ માન્યતાથી જ આ વાત સિદ્ધ થઈ જાય છે કે જેઓ જેમના વડે આવેષ્ટિત છે તેઓ તેમને સ્પશી પણ રહ્યા છે. છતાંએ અહીં જે આ જાતને પ્રસન્ન કરવાવામાં આવ્યું છે ते उत्तर सूत्रमा प्रश्न जाना साधान माटे ४२वा मावस छ. 'वणं भंते ! कि जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे' के गौतम प्रभुने मातना प्रश्न यो त ! सवसमुदत સ્પર્શનારા જે જમ્બુદ્વીપના ચરમપ્રદેશ છે તે શું જંબુદ્વીપના જ કેહેવાશે ?

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