Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 775
________________ - -- ७६८ ___ सम्पूछीपप्रति पव्वया' कियन्त:-कियत्संख्यकाः काञ्चनपर्वताः सुवर्णमया सुवर्णवदयमासमानाः पर्वताः प्रज्ञता:-कथिताः, तथा-केवइया वखारा' कियन्त:-कियत्संख्यकाः वक्षस्कारा:-वक्षस्कारनामकाः पर्वताः प्रज्ञप्ता:-कथिताः, तथा--'केवइया दी हवेयद्धा' कियन्त:-कियत्संख्या दीर्घवैतादया स्तनामकपर्वतविशेषाः प्रज्ञप्ता: कथिताः, तथा-'केवड्या बट्टवेयहा पनना' कियन्त:-क्यिासंख्यकाः वृत्तवैनाया एतनामकाः पर्नता प्रज्ञताः कथिवा, इतिप्रश्नः, भगवानाह- 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे पौतम ! 'जंबुद्दीवे छवा सहरपब्धया' जम्बूद्वीपनामके द्वीपे पटसंख्या वर्षयरपर्वताः प्रज्ञप्ता:-कपिता, तर व-भस्वादिकं धरन्ति ये ते वर्षधराः क्षुल्लक्ष्मिवदादयः ते संख्या पडेव भवन्तीति । तथा-'एगे मंदरे पब्बए' एक:-एकएव जम्बूद्वीपे मन्दरो मेरुनामकः पर्वतो विद्यते इति । तश-एगे चित्तकूडे' एक:-एक एव चित्रकूटनामा पर्वतो जम्बूद्वीपे, नया-एगे विचित्तकूडे' एका-एक एव विचित्रकूटः पर्वतः जम्बूद्वीपे, एतौ च यमलजातकादिव द्वौ पर्वती देवकुरुवर्तिनी, तथा'दो जमराएब्जया' द्वौ-द्विसंख्यको यमकपर्वतो उत्तरस्वत्तिनी, तथा-'दो कंचण पब्वचसया' द्वे काश्चनपर्वतशवे, देवरूतरकुरुनिष्ठ हुदराको नयतटयोः प्रत्येकं ग दश काञ्चनककी तरह मालूम पडने वाले जो पर्वत थे यमकपर्वत है। काञ्चन पर्वत सुवर्ण: मथ हैं अतः ये सुवर्ण के जैसे प्रतिभालित होते हैं। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयना ! अंधुदीचे छ बालपनया' हे गौतम ! जम्बूद्वीप थे छ वर्षधर पर्वत कहे गये हैं-ये क्षुल्लहिलवत् आदि नाम वाले हैं इन्हें वर्षधर इसलिये कहा गया है कि इनके द्वारा क्षेत्रों का विमान किया गया है। एक मन्दर पर्वत कहा गया है और यह शरीर में कालिजी तरह ठीक जहीर के बीच में है। एक चित्रकूट पर्वत कहा गया है 'पगे विचित्तकूडे' एक ही विचित्र कूट पर्वत काला गया है 'दो जमग पत्रया, दो कंचएमवयसया दो यारत कहे गये हैं ये परक पर्वत उत्तरकुरक्षेत्र में हैं। दो सौ काञ्चन पर्वत राहे गये है। क्यों कि देवगुरु और उत्तरकुर में जो १० हूद है उनके दोनों तटों पर છે. કંચનપર્વત સુવર્ણમય છે એથી જે તે સુવર્ણ જેવા પ્રતિભાસિત થાય છે. એના भाभा प्रभु ४९ छ-'गोषमा | जंबुद्दीये छ वासहरपाया' हे गीत | दीपमा વર્ષધર પર્વતે આવેલા છે. એ ભુલ હિમવંત વગેરે નામવાળા છે. એમને વર્ષધર એટલા માટે કહેવામાં આવેલા છે કે એમના વડે ક્ષેત્રનું વિભાજન કરવામાં આવ્યું છે. એક મંદરપર્વત કહેવામાં આવેલ છે અને એ પર્વત શરીરમાં નાભિની જેમ ઠીક જંબુદ્વીપના मध्यमामा मस्थित छे. ४ शिट वामां आवे छे. 'एगे विचित्त कुडे' मे४४ वियित्र छूट त वाम मा छे. 'दो जमगपव्यया, दो कंचणगपव्ययसया' में યમપર્વતે કહેવામાં આવેલા છે. એ યમપર્વતે ઉત્તરકુરુક્ષેત્રમાં છે. બસે કાનપર્વતે કહેવામાં આવેલા છે. કેમકે દેવકુરુ અને ઉત્તરકુરુમાં જે ૧૦ હેકે છે. તેમના બને

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