Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 802
________________ ७९१ प्रकाशिका टीका-षष्ठोवक्षस्कारः सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७-महाविदेहक्षेत्रप्रमाणम् ३३६८४ योजनानि कलाः ४ । ८-नीलवत्पर्वतप्रमाणम् १६८४२ योजनानि, कले २। ९-रम्यकक्षेत्रप्रमाणम्-८४२१ योजननानि, कला १ । १० रुक्मिपर्वतप्रमाणम्-४२१० योजनानि कलाः १० । ११- हैरण्यवतक्षेत्रप्रमाणम्-२१०५ योजनानि कलाः ५। १२-शिखरिपर्वतप्रमाणम्-१०५२ योजनानि कलाः १२ । १३-ऐरवतक्षेत्रप्रमाणम्-५२६ योजनानि कलाः ६। ९९९९६ योजनानि कलाः ७६ दक्षिणोत्तरतः सर्व संकलने १००००० योजन सर्वाप्रम्, अत्र दक्षिण जगतीमूल विष्कम्भो भरतक्षेत्रप्रमाणे, उत्तर जगती सत्कश्च ऐरवतक्षेत्र प्रमाणे अन्तर्भावनीय इति । (७) महाविदेह क्षेत्र का प्रमाण ३३६८४६० योजन का है। (८) नीलवत पर्वत का प्रमाण १६८४२,२ योजन का है। (९) रम्यकक्षेत्र का प्रमाण ८४२१. योजन का है। (१०) रुक्मि पर्वत का प्रमाण ४२१०२० योजन का है। (११) हैरण्यवतक्षेत्र का प्रमाण २१०५,६ योजन का है। (१२) शिखरिपर्वत का प्रमाण १०५२१२ योजन का है। (१३) ऐरवतक्षेत्र का प्रमाण ५२६६० योजन का है। इस तरह यहां पर योजन का जोड ९९९९६ निन्नानवेहजार नौ सौ छन्नु आता है और कलाओं का जोड ७६ आता है इनमें १९ का भाग देने पर ४ योजन बनते हैं अतः उपर्युक्त योजन प्रमाण में ४ को जोडने पर जम्बूद्वीप का पूरा विस्तार १ लाख घोजन का आ जाता है यहां दक्षिण जगती का मूल विष्कम्भ (6) निषध पर्वतर्नु प्रभा १९८४२२. यौन रे छे. (૭) મહાવિદેહ ક્ષેત્રનું પ્રમાણ ૩૩૬૮૪ જન જેટલું છે. (८) नle पर्वतर्नु प्रमाण १९८४२११ योमन रेसु छे. (6) २भ्य४ क्षेत्र प्रभार ८४२११ यौन छे. (१०) मि तनु प्रमाण ४२१०११ या २९ छे. (૧૧) હૈરણ્યવત ક્ષેત્રનું પ્રમાણ ૨૧૦૫ જન જેટલું છે. (૧૨) શિખરિ પર્વતનું પ્રમાણ ૧૦૫ર જન જેટલું છે. (૧૩) અરવત ક્ષેત્રનું પ્રમાણ પર જન જેટલું છે. આ પ્રમાણે અહીં જનને સરવાળે ૯૬ નવાણું હજાર નવસે છનું છે, અને કલાઓને સરવાળે પ૭૬ થાય છે. એમાં ૧ને ભાગાકાર કરીએ તે ૪જન થાય છે. એથી ઉપર્યુક્ત જન પ્રમાણમાં ૪ ને જોડવાથી જંબદ્રીપને સંપૂર્ણ વિસ્તાર ૧ લાખ

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