Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 747
________________ ७३६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिमा कियत्पर्यनामाह 'जाय णमोऽन्युते अरहमोत्ति कट्टु वंदइ णमंसइ जाव पज्जुबासई' इति यावनमोऽस्तुतेऽर्हते, इति कृत्वा बन्दते नमस्थति बन्दित्वा नास्यित्वा यावत्पर्युपास्ते इति सूत्र संख्या-११॥ अथ कृतकृत्या, शक्रो भगवतो जन्मपुरप्रयाणाय, उपक्रमते-तएणं इत्यादि मूलम्-तएणं से सबके देविंदे देवराया पंच सक्के विउच्वइ, विउ. वित्ता एगे सक्के भय तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ एगे सक्के पिट्रओ आयवत्तं धरेइ दुवे सका उसओ पाति चामरुक्खेवं कति एगे सक्के वजपाणी पुरओ एगई, तए णं से सबके चउरासीईए सामाणि साहरूसीहिं जार अण्णेहिअ भवणवा वाणसंतरजोइसनेमाणिएहि देवेहिं देवीहिअ सद्धि संपडिबुडे सन्धिद्धीए जाब जाइयरवेणं ताए उछिनाए जेणेव भगवओ तित्थयरसन जम्मणणयरे जेणेव जम्मणभवणे जेणेव तित्थयरमाया तेणेव उवागच्छ। उचामच्छिता भगवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेइ ठवित्ता नित्ययरपडिरूवर्ग पडिसाहरइ पडिसाहरिता ओप्लो पडिलाहरइ पडिलाहरिता एग महं खोमजुअलं कुंडलजुअलंद भगवो लिस्थरस्त उस्सीसगमूले ठवेइ ठकित्ता एगं महं सिरिदारगडं तवणिजलंयूसा सुरणपयरगमंडियं णाणामणिरयणविविहहारद्वहारउवसोहिय समुदयं भगवओ तिथपरस्त उल्लोअं लि निक्खिवह तण्णं भगवं तित्थयरे अणिमिसाए दिदीए देहमाणे देहमाणे सुहं सुहेशं अभिरममाणे चिठ्ठइ तपणं से सबके देविदे देवराया द्वारा समझाई है । अभिषेक करने के बाद 'जाव णमोत्थु ते अरहओ त्ति कट्ट वंदइ णमंसह जाच पज्जुवामाइ' गक ने भी अच्युतेन्द्र की तरह प्रभुकी पूर्वोक्त सिद्धबुद्ध आदि पदों डरमा स्तुति करते हुए उनकी वन्दना की और नमस्कार किया बाद में वह उनकी सेवा करने को भावना से अपने यथोचित स्थान पर खडा हो गया ॥११॥ मलिये माह 'जात्र णमोत्युते अरहओ त्ति कटु व दइ णमंसइ जवि पन्जुवालइ' शर्ड પણ અય્યતેન્દ્રની જેમ પ્રભુની પૂર્વોક્ત સિદ્ધ-બુદ્ધ આદિ પદે વડે સ્તુતિ કરતાં તેમની વંદના કરી. અને નમસ્કાર . ત્યાર બાદ તે તેઓશ્રીની સેવા કરવાની ભાવનાથી પોતાના ચચિત સ્થાને આવીને ઊ રહ્યો છે ૧૧ છે

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