Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 702
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू. ९ अच्युतेन्द्रकृताभिषेकसामग्रीसंग्रहणम् ६९३ र्थशांश्च सर्पपान गृह्णन्ति ते आभियोगिकाः देवाः 'गिहिता' गृहीत्वा 'परमबहाओ दहोदगं उप्पलादीणि पद्मद्रहात् द्रहोदकसुत्पलादीनि च गृह्णन्ति । ‘एवं सबकुलपयएसु वट्टवेअद्धेसु सव्वमहदहेसु सव्ववासेसु सम्मचकवष्टि विजएसु वक्खारपव्यएसु अंचरणईसु विभासिज्जा' एवं क्षुद्रहिमवन्न्यायेन सर्वक्षेत्रगवस्थाकारित्वेन सर्वकुलपर्वतेषु सर्वकुलकल्पापर्वताः सर्वकुलपर्वताः, हिमाचादयस्तेषु, तथा वृत्तवैताढयेषु, तथा सर्वमहादहेबु पाद्रहादिषु तथा सर्ववर्षेषु, भरतादिपु, सर्वचक्रवति विजयेपु कच्छादिषु वक्षस्कारपर्वतेषु गनदन्ताकृतिषु माल्यवदादिषु सरलाकृतिषु च चित्रकूटादिषु तथा अन्तरनदीषु ग्राहवत्यादिषु विभाषेत बदेद पवतेषु तु तुवरादीनां द्रहेषु उत्पलादीनाम् कर्मक्षेत्रेपुमागधादि तीर्थोदकमृदा नदीषु उदकोमयतटमृदा ग्रहणं वक्तव्यमित्यर्थः, 'जाव उत्तरकुरुस्सु जाव' यावत् उत्तरकुरुपु यावत् अत्र प्रथमं यावत् पदात् देवकुरुपरिग्रहः तथाच उत्तरकुरुषु देवकुरुषु च चित्रविचित्रगिरि यमकगिरि काञ्चनगिरि हृददशकेषु यथासम्भवं वस्तुजातं गृह्णन्ति, द्वितीय यावत्पदात् पुष्करपरद्वीपार्द्धयोः भरतादिस्थानेषु वस्तुप्रो पाच्यः। ततो जम्बूद्वीपोऽपि तहस्तैव वाच्यः कियपर्यन्तमित्याह-'सुदंसणेभहसालवणे इत्यादि मुदसणभहसासवणे सन्चतुअरे जाव सिद्धत्थएभ गिण्डंति' सुदर्शने पूर्वार्द्धमेरौ भद्रशालब ने नन्दनबने सौमनसबने पण्डकवने च सव्वतुवरान गृह्णन्ति तथा तस्यैव को और उत्पल आदि को लिया इसी कुलपर्वतो में से, वृत वैतादयों में से एवं सर्व महाद्रहो मे से 'सव्यवासेस, सन चक्कदाहविजएसु, बनवारपवएसु, अंतरणई, विभालिज्जा' लमस्त भरतादि क्षेत्रों में से, समस्त चक्रवर्ती विजयों में से, वक्षस्कार पर्वतों में से अन्तर नदियों में से जलादिकों को लिया 'जाव उत्तरकुरुसु जाव सुदंसणभ६सालवणे तब्ध तुअरे जाव सिद्धत्थए य गिण्हंति' यावतू उत्तरकुरु आदि क्षेत्रों में से थावत् पदयात्व देवकुरु में से, चित्र विचित्र गिरिमें से यमक गिरिमें से काञ्चनगिरि में से एवं हृद् दशकों में से यथा संभव वस्तुओं को लिया तथा द्वितीय यावत्पद से पुकारवर दीपा के पूर्वापरार्द्ध भागों में स्थित भरतादि स्थानों में से यथा संभय वस्तुओं को लिया इसी तरह जम्बुद्वीपस्थ पूर्वार्द्ध मेरुमें स्थित सद्रशालवन में से बन्दनवन में से, सौमनसवन લીધાં. પવાદ્રહથી દ્રહોદક અને ઉત્પલાદિ લીધાં. એજ કુલ પર્વતમાંથી, વૃત્ત વૈતાઢયેभांथी तम०४ सब सही समुद्रोमांधी 'सव्व वालेसु, सव्व वक्कवट्टिविजएसु वक्खारपव्यण्सु अंतरणईसु विभासिज्जा' समस्त स त्रमाथी, समस्त यवतीवियोमाथी पक्षः१२ तामाथी मन्तर नहीमामाथी, rang सीधा. 'जाव उत्तरकुत्सु जाव सुदं. सणभद्दसालवणे सव्वतुअरे जाव सिद्धत्थए य गिव्हंति' यात त२ ७३ माह क्षेत्र માથી ચાવતું પદ ગ્રાહ્ય દેવકુમાંથી, ચિત્ર વિચિત્ર ગિરિમાંથી, યમક ગિરિમાંથી, તેમજ હુદ દશકમાથી યથા સંભવ વસ્તુઓ લીધી. તથા દ્વિતીય યાવત્ પદથી પુષ્કરવર દ્વીપાઈના પૂર્વાપરાદ્ધ ભાગમાં સ્થિત ભરતાદિ સ્થાનમાંથી યથા સંભવ વરતુઓ લીધી. આ

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