Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 736
________________ - प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षरकारः सू. ११ अभिषेकनिगमनपूर्वकमाशीर्वादः ७५ 'तप्पढमशए' तत् प्रथमलया-इति ग्राह्यम् 'लूहिता' रूक्षयित्वा शरीराणि पोन्छन्य एवं जाव कप्पश्वलगंपिन अलंकिरिअविभूसियं करेइ' एयर-उत्तप्रकारेण यावत्कल्पवृक्षमिवअलंकृतं वस्त्रालङ्कारेण विभूषितम्-आभरणालङ्कारेण करोति, अत्र वायत्पदान् ‘लुहित्ता सरसेगं गोशीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपइ अणुलिंपित्ता-नासानीसासवायवोज्झं चवखुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवाइरेगं धवलं कण मखचियंतकम्मं देवदूसजूलं निअंसावेइ निअंसावित्ता' इति ग्राह्यम् एपामर्थः, रुक्षयित्वा तस्य शरीराणि प्रोञ्चसरसेन रससहितेन गीशीर्यचन्दनेन गात्राणि शरीराणि, अनुलिम्पति, अनुलिप्य नासानिःश्वासवादबाह्यम् तथा चक्षुहरं दर्शनीयस् तथा वर्णपर्शयुसम् तया 'हयलालापेलवातिरेक धवलम् , तत्र हयलालाअश्वमुख मलं तद्वत् पेलनस् कोमलम् अतिरेकपवलं च-अत्यन्तस्वच्छ च तथा कनकखचि. तान्त कर्मकनकैः काञ्चनैः सचिता अन्तम अन्तर्भागो यस्य तत्तथाभूतम्-एवं भूतं देवदष्ययुगलम् देववस्त्रयुगलस-परिधानोत्तरीयरूपं निवासयति, परिधापयति निवास्य परिवाप्य-इति बोध्यः। 'करिता' कृत्वा 'जाव नविहिं उपदंसेइ' यावत् नाटयविधिमुपदर्शयति अन 'लूहेत्ता एवं जाच कप्परुखगंपिक अलंकिय विभूलिभं करेइ' शरीर को प्रोन्छल करके फिर उसने प्रभुके सुख हस्त आदि अवयवों को पोंछा यहां यावत् शब्द से 'तप्पटमयाए' पद का ग्रहण हुआ है पॉछकर उसने फिर प्रभुको वस्त्र और अलंकारों से विभूषित किया अतः प्रभु उस समय साक्षात् कल्पवृक्ष के जैसे प्रतीत होने लगे यहां यावत् शब्द ले-'लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलि-: म्पह, अणुलिपिता नासानीलालवाययोज्ज्ञं विश्खहरवष्णफरिसजुत्तं, हयलाला. पेलवाइरेगधवलं कणम खचियंतसम्म देवदूलजुअलं निअलावे नियंसावित्त७ इस पाठका संग्रह हुआ है-इसकी व्याख्या स्पष्ट है 'करिता जाब विहिं उवदसेइ, उपदंसिता अच्छेहि सण्डहिं स्थणामएहिं अच्छरसातण्डुलेहिं भगवओ समणस्त पुरओ अट लंगलगे आलिहइ' वस्त्रालंकारों से प्रभुका अलंकृत करके पक्षमा, सुमार, सुगचित पसथी छन यु. 'लूहेत्ता एवं जाव कापक्वगंपिलव अलंकिय विभूसिरं करेइ' शरीर छन अरीने पछी तणे प्रभुना भुष, स्त, वगैरे अपयवानु छन ध्यु'. मी यावत् शपथी 'तपढमयाए' ५४ हुए थयु च्यु પ્રેછન કરીને પછી તેણે પ્રભુને વસ્ત્ર અને અલંકારોથી વિભૂષિત કર્યા. એથી પ્રભુ તે मते साक्षात् ४६५ वृक्ष 24n anा भांडया. ही यावत् शपथी 'लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदगेगं गायाई अगुलिम्पइ, अगुलिंपित्ता नासानीसासवायवोझ चक्खुहरवण्णफरिस. जुत्तं, हयलालापेलवाइरेगधवलं कणगखचिवंत कम्मं देवदुमजुथलं नियंसावेइ निसावेइत्ता' मा ५४ सहीत थय। छे. सनी. व्याघ्या २५८ १, 'करित्ता जाव णट्टविहि उवदंसेइ, उवसित्ता अच्छेहिं सहेहिं रवणामणहिं अच्छरसातण्डुलेहिं भगवओ समणस्स पुरओ अट्ठ मंगलो आलिहई' पनामाथी प्रभुने मत या पछी यावत् नाट्यविधिनु

Loading...

Page Navigation
1 ... 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803