Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 727
________________ ઉદ્ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अप्येककाः उत्पातनिपातम् तत्र उत्पातः, आकाशे उत्पतनम् निपाठः, आकाशात् अवपतनम् उत्पातपूर्वी निपातो यस्मिन् तत् तथाभूतम् एवम् 'नित्रयउप्पयं' निपातोत्पातम् निपात पूर्व उत्पातो यस्मिन् तत् तथाभूतम् 'संकुअपसारिथं' संकुचित्रप्रसारितहस्तपादयोः संको चनेन संकुचितं तयोः प्रसारणेन प्रसारितम् अभिनयरहितं यत्तथाभूतम् 'जाव भंवसंत णाम' यावत् भ्रान्तसम्भ्रान्तकम् अत्र व्याख्यानम् अनन्तरोक्तक त्रिंशत्तमनाटकं यथा व्याख्यातं तथैव वोध्यम् अत्र - यावत्पदात् 'रिआरिअं ' इति ग्राह्यम् तत्र 'रिअं' गमनं रङ्गभूमेर्निष्क्रमणम् 'आरिअं ' पुनस्तत्रागमनमिति 'दिव्यं नट्टविहिं उपदंसंतीति' दिव्यं नाटय विधिमुपदर्शयन्तीति इदं च पूर्वोक्तचधिद्वात्रिंशद्विषनाटयेभ्यो विलक्षणं सर्वाभिनयशून्यं गात्रविक्षेपमात्रं farara उपयोग नर्त्तनम् भरतादिसङ्गीतेषु नृत्तमित्युक्तम्, यथोक्तमेव नाटयम् प्रकारद्वयेन संग्रहीतुमाह- 'अप्पेगझ्या तंडवेति अप्पेगइया लासेंतित्ति' अध्येककाः ताण्डवन्ति दिव्वं नह विहिं उवदंसन्तीति' अब सूत्रकारने यहां ऐसा प्रकट किया है कि अभि नय शून्य भी नाटक होते हैं-ये नाटक भी कितनेक देवों ने किये-इन नाटकों में उत्पात निपात- आकाश में उडना और फिर वहां से नीचे उतरना होता है इस तरह उत्पात निपात रूप खेलकूद के काम कितनेक देवों ने किये, कितनेक देवों ने पहिले नीचे गिरना और बादमें ऊपर की ओर उछलना ये काम किये कितने देवों ने अपने २ हाथपैरों को मनमाना पसारने का काम किया और फिर उनका संकोच करने का काम किया कितनेक देवों ने इधर उधर घूमना आदि रूप कार्य किया यहां यावत्पद से 'रिआरिअ' रङ्गभूमि से बाहर आना और फिर उसमें प्रवेशकरना इस रूप जो रिअ और अरिअ है उसका ग्रहण हुआ है। इस तरह से वहां उन सब देवो' ने 'दिव्वं नविहिं उवदंसन्तीति' दिव्य नाटय विधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइआ तंडवेंति, अप्पेगहआ लासेंति' कितनेक 'अपेगइया उत्पयनिवयं नित्रयउपयं संकुचिअपस रिअं जाव अंतसमंतणामं दिव्त्रं नट्टविहि उवदंसन्तीति' हवे सूत्रसरे महीं या प्रमाणे स्रष्टता भरी छे अलि નય શૂન્ય ગણુ નાટક હાય છે. એ પ્રકારના નાટકો પણ દેવેએ ભજવ્યાં હતા. એ નાટ કામાં ઉત્પાત નિપાત, આકાશમાં ઉડવું અને પછી ત્યાંથી નીચે ઉતરવું હોય છે. આ પ્રાણે ઉત્પાત, નિપાત રૂપ ખેલ કૂદ નાટકે કેટલાક દેવાએ. કર્યો કેટલાક દેવેએ પહેલાં નીચે પડવુ' અને ત્યાર બાદ ઉપરની તરફ ઉછળવુ, એવા અભિનય કર્યાં. કેટલાક ધ્રુવેએ પોતપોતાના હાથ-પગેાને યથેચ્છ રૂપમાં પ્રસૃત કર્યાં, અને પછી તેમને સંકુચિત કરવા રૂપ અભિનય કર્યાં. કેટલાક દેવાએ આમ-તેમ ફરવુ વગેરે રૂપ કાર્ય કર્યું. અહીં યાત્રત પદથી રિમાર્જિં ૨ગ ભૂમિમાંથી બહાર આવવું અને પછી તેમાં પ્રવેશ કરવુ એ રૂપમાં જે રિઅ અને અરિઅ છે તેનું ગ્રહણ થયું છે. આ પ્રમાણે त्यां मधा हेवा 'दिव्वं नट्टविहिं उत्रदंसंतीति' हिव्य नाट्य विधिनु प्रदर्शन म्यु

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