Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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कम्पनीपप्राप्तिको
स्स भाणियव्व एवं भवणवइवाणमंतर जोइसिआ य सूरपजवसाणसएणं परिवारेणं पत्ते पत्तेअं अभिसिंचंति, तएणं से इसाणे देविदे देवराया पंच ईसाणे विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे इसाणे भगवं तित्थयरं करपुटसंपुडेणं गिण्हइ गिण्हित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सपिणसपणे, एगे ईसाणे पिट्टओ आयवत्तं धरेइ दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेंति एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिटुइ । तए णं से सबके देविंदे देवराया आभिओगे देवे सदावेइ सहावित्ता एसो वि तहचेव अभिसेय आणत्तिदेइ तेऽवि तहचेव उवणेति, तपणं से सक्के देविदे देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउद्दिसिं चत्तारि धवलवसभे विउध्वेइ संखदलविमलनिम्मलदधिधणगोखीरफेणरयणिगरप्पगासे पासाईए दरसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, तएणं तेसिं चउण्हं धवलवलभाणं अहिं सिंगेहितो अतोअधाराओ णिगच्छंति, तए णं ताओ अटतोअधाराओ उद्धं वेहासं उप्पयंति उप्पइत्ता एगओ मिलायंति मिलाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स सुद्धाणंसि निवयंति । लए णं से सक्के देविदे देवराया चउरासीए सामाणि साहस्लीहिं एयस्स वि तहेव अभिसेओ भाणियन्त्रो जाव नमोऽत्थुणं ते अरहओ तिकट्ठ वंदइ णमंसइ जाव पज्जुवासइ ॥सू०११॥ ___छाया-ततः खलु सोऽच्युतेन्द्रः, सपरिवारः स्वामिनं तेन महता महता अभिषेकेण अभिपिचति, अभिपिच्य करतळपरिगृहीतं यावत् मस्तके अञ्जलिं कृत्वा जयेन विजयेन च वर्द्धयति वर्द्धयित्वा ताभिरिष्टाभि र्यावत् जयजय शब्दं प्रयुक्त प्रयुज्य यावत् पक्षमलमुकुमारया सुरभ्या गन्धकापायिकथा गात्राणि रुक्षयति रुक्षयित्वा एवं यावत् कल्पवृक्षमिव अलङ्घनविभूपितं करोति कृत्वा यावत् नाटयविधिमुपदर्शयति उपदय अच्छे लक्ष्णैः रजतमयैः अच्छरसतण्डुलैः भगवतः स्वामिनः पुरतः अष्टाष्टमङ्गलकानि आलिखति तघया-दर्पण १ भद्रासन २ वर्द्धमान ३ वरकमल ४ मत्स्य ५ श्रीवत्स ६ स्वस्तिक ७ नन्दावर्त ८ लिखितानि अप्टाष्टमङ्गलकानि । १ । लिखित्वा करोति उपचारम् कोऽसौ ? पाटलमल्लि चम्पकाशोक पुन्नागचूतमञ्जरी नवमालिक वकुलतिलकरवीर कुन्दकुजककोरण्डकपत्र दमनक वरसुरभिगन्धगन्धिफस्य कयग्रहगृहीतकरतलप्रभ्रप्टविप्रमुक्तस्य दशादर्णरय कुसमनिकररय स्त्र चित्रम् जान
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