Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 597
________________ नम्धीपमासिक आदर्शो-दर्पणो जिनजनन्योः शृङ्गारादि विलोकनाथुपयोगी यासां ताः हस्तगतादर्शा इत्यर्थः झूले विशेषणस्य हस्तगतपदस्य पूर्वे प्रयोक्तव्ये परनिपातःप्राकृतत्वात् चोध्यः, आगायन्त्यःथा ईपत्स्वरेण गायन्त्यः प्रारम्भकाले मन्दरस्वरेण गायमानत्वात्, परिगायन्त्यः-गीतप्रवृत्ति सालानन्तरम् परितः उच्चस्वरेण गायन्त्यस्तिष्ठन्ति इति । अत्र च रुचकादि स्वरूपप्ररूपणा • इयम् एकादेशेन एकादशे द्वितीयादेशेन त्रयोदशे तृतीयादेशेन एकविंशे रुचकद्वीपे बहुमध्ये . दलयाकारो रचयशैल: चतुरशीतियोजनसहस्राणि उच्चः मूले १००२२ मध्ये ७०२३ शिखरे ४०२४ योजनानि विस्तीर्णः, तस्य च शिरसि चतुर्थे सहसे पूर्वदिशि मध्ये सिदायतनकूटम् उभयोः पाश्वयोः चत्वारि २ दिक्कुमारीणां कूटानि तत्र नन्दोत्तराधाश्रतत्र एकपार्थ कूटचतुष्टये द्वितीये च पाच कूट चतुष्टये विजयाद्याश्वतस्रः दिक्कुमारी महतरिकाः परिवसन्तीतिभावः । . सम्प्रति दक्षिणरुचकस्थानां वक्तव्यमाह-'तेणं कालेणं' इत्यादि, 'तेणं काठेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्यवाओ अट्ठदिसाकुमारीमहत्तरियाओ तहेव जाव विहरति' तस्मिन् और पहिले धीमे स्वर से और बाद में जोर जोर से जन्मोत्सव के मांगलिक गीत गाने लगी इन्हों के हाथ में दर्पण इसलिये था कि जिन और उनकी माता क्षारादि को देखने के लिये इसे अपने काम में लावें यहां रुचकादि के स्वरूप की प्ररूपणा इस प्रकार से है एक देश से ११ वें द्वितीया देश से १३ वें, तृतीया देश से २१ वें रुचक द्वीप में ठीक बीच में वलय के आकार का रुचक शैल है यह चौरासी हजार योजन का ऊंचा है मूलमें इसका विस्तार १००२२ योजन का है मध्य में ७०२३ योजन का है और ऊपर शिखर में ४०२४ योजन का हे उसके ऊपर शिखर पर चतुर्थ हजार योजन पर पूर्व दिशा की ओर बीच में सिद्धा यतन कूट है दाइ बांई ओर चार कूट दिक्कुमारिकाओं के हैं इनमें नन्दोसरा आदि दिक्कुमारिकाएं रहती हैं। ' दक्षिण रुचकस्थ दिक्कुमारिकाओं की वक्तव्यता 'तेणं कालेणं तेणं सम. ' સમુચિત સ્થાન ઉપર હાથમાં દર્પણ લઈને ઊભી રહી. અને પહેલાં ધામ માં અને - ત્યાર બાદ જોરજોરથી જજોત્સવના માંગલિક ગીતે ગાવા લાગી. તેમના હાથમાં દર્પણ "એટલા માટે હતું કે જિન અને તેમના માતુશ્રી ગંગારાદિ જેવા માટે એને પિતાના કામમાં લાવે. અહીં ટુચકાદિના સ્વરૂપની પ્રરૂપણું આ પ્રમાણે છે–એક દેશથી ૧૧-, દ્વિતીયા દેશથી ૧૩માં, તૃતીયા દેશથી ૨૧માં સુચક દ્વીપમાં, ઠીક મધ્યભાગમાં વલયના આકાર જે સુચક શૈલ છે, આ ૮૪ હજાર યોજન જેટલે ઊંચે છે. મૂળમાં એને વિસ્તાર ૧૦૦૨૨ જન જેટલું છે. મધ્યમાં ૭૦૨૩ એજન જેટલો છે અને ઉપર શિખરમાં ૪૦૨૪ ચેાજન જેટલો છે. તેની ઉપર–શિખર ઉપર ચાર હજાર જન ઉપર પૂર્વ દિશા - તરફ મધ્યમાં સિદ્ધાયતન ફૂટ આવે છે. એની ડાબી અને જમણી તરફના ચાર ફૂટ * દિકમારિકાઓના છે. એ કૂટમાં નત્તરા આદિ દિકકુમારિકાઓ વસે છે.

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