Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः रु. ३९ पण्डकवनवर्णनम्
४७५ चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेग, पुनः 'मूळे' मूलावच्छेदेन 'साइरेगाई' सातिरेकाणि किश्चिदधिकानि "सत्तत्तीसं' सप्तत्रिंशतं 'जोयणाई' योजनानि 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण परिधिना तथा 'मज्झे' मध्ये 'साइरेगाई' सातिरेकाणि 'पणवीसं पञ्चविंशति 'जोयणाई योजनानि 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण वर्तुलत्वेन 'उप्पि' उपरि 'साइरेगाई' सातिरेकाणि 'वारस' द्वादश 'जोयणाई योजनानि 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण 'मूले मूले 'विच्छिण्णा' विस्तीर्णा मध्योपरिभागापेक्षया विस्तारवती मज्झे' मध्ये 'संखित्ता' संक्षिप्ता मूलापेक्षयाऽल्पविस्तारा 'उपि' उपरि 'तणुया' तनुका मूलमध्यापेक्षयाऽल्पतरविस्तारा अत एव 'गोपुच्छसंठाणसंठिया' गोपुच्छसंस्थानसंस्थिता-जीकृतगोपुच्छाकारेण स्थिता, तथा 'सबवेरुलियामई' सर्ववैडूर्यमयी सर्वात्मना वैडूर्यमणिमयी तथा 'अच्छा' अच्छा-आकाशस्फटिकवन्निर्मला अथैतां पद्मवरवेदिका वनपण्डाभ्यां परिवेप्टिततया वर्णयति-'सा णं' एगाए' सा मन्दरचूलिका खल एकया 'पउमवश्वेइयाए' पद्मवरवेदिकया 'जाव' यावत् विष्का-विस्तार-१२ योजन का है मध्यभाग में इसका विस्तार आठ योजन का है शिखरभाग में इसका विस्तार चार योजन का है खूल भाग में इसका परिक्षेप कुछ अधिक ३७ योजन का है तथा 'मज्ञ साइरेगाईपणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं' मध्यभाग में इसका परिक्षेप कुछ अधिक २५ योजन का है 'उप्पिसाइरेगाईघारस जोषणाई परिक्खेवेणं' ऊपर में इसका परिक्षेप कुछ अधिक १२ योजन का है।"भूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उपित्तणुआ गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववेलियामई अच्छा' इस तरह यह मूलमें विस्तीर्ण मध्य में संक्षिप्त और ऊपर में पतली हो गई है अतः इसका आकार गायकी उर्वीकृत पूंछ के जैसा हो गया है । यह सर्वात्मना वज्रमय है और आकाश एवं स्फटिक-स्फटिक मणि के जैसी निर्मल है। 'साणं एगाए पउपवरवेड्याए जाव संपरिक्खित्ता इति' यह मन्दर चूलिका एक पावर वेदिका और एक वनषण्ड से चारों ओर से घिरी हुई है यहां यावत्पद से 'एकेन वनषण्डेन च सर्वतः समन्तातू' यह पाठ ग्रहीत જેટલું છે. શિખર ભાગમાં આનો વિસ્તાર ચાર એજન જેટલું છે. મૂલ ભાગમાં આવે परिक्ष५ ४४ अधि: 3७ यान - 22वी छ. तथा 'मझे साइरेगाई पणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं' मध्य भागमा गाना प२२५ ४ मधि४ २५ योशन । छे. 'उप्पि साइरेगाइं बारस जोयणाई परिक्खेवणं'. परिक्षामा याना परि२५४७ अधिः १२ योजन
सो छ. 'मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पि तणुआ गोपुच्छसंठाणसांठया सव्व वेरु लियामई अच्छा' मा प्रभाव मा भूदमा विस्तायु, मध्यमा सक्षिस भने परि भागमा પાતળી થઈ ગઈ છે. એથી આને આકાર ગાયના ઉથ્વીકૃત પૂંછ જે થઈ ગયો છે. આ सत्मिना भय मन मा तभ० २६२४२वी निभग छे. 'सा णं एगाए पउमवरवेड्याए जाव संपरिक्खित्ता इति' भी भ२ यूलि ४ ५१२ ३६ भने ४ नमथा.