Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
View full book text
________________
सारा का सारा ब्राह्मण वर्ग और ब्राह्मण वग का अनुयायी करोडो की सख्या वाला भारतीय जनता का जनमत था। राज्य-सत्ता और वैदिक अध-विश्वासों पर आश्रित अजेय शक्ति-युक्त जन-मत इनके क्राति मार्ग पर, पग पग पर, काटे बिछाने के लिये तैयार खडे थे।
निर्मम और निर्दय हिंसा प्रधान यज्ञो के स्थान पर आत्मिक, मानसिक तथा शारीरिक तप-प्रधान सहिष्णुता का उन्हे विधान करना था, मासाहार का सर्वथा निपेध करके अहिंसा को ही मानव-इतिहास मे एक विशिष्ट और सर्वोपरि सिद्धान्त के रूप में प्रस्थापित करना था। ईश्वरीय विविध कल्पनाओ के स्थान पर स्वाश्रयी आत्मा की अनत शक्तियो का दर्शन कराकर वैदिक मान्यताओ में एव वैदिक विधि-विधानो में क्रांति लाना था। ईश्वर और आत्मा संबंधी दार्शनिक विचार धारा को आत्मा की ही प्राकृतिक अनतता में प्रवाहित करना था। ___इस प्रकार असाधारण और विपमतम कठिनाइयो के वीच तप, तेज,
और त्याग के वल पर भगवान महावीर स्वामी द्वारा प्रगति दिया हुआ विचार-मार्ग ही जैन-धर्म कहलाया।
इस प्रकार भगवान महावीर स्वामी का महान् तपस्या पूर्ण बलिदान बतलाता है कि उन्होने अपनी तपोपूत निर्मल आत्मा में धर्म का मौलिक स्वरूप प्राप्त किया, जिस के वल पर उनका आध्यात्मिक काया-कल्प
हो गया। ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा, आत्म विश्वास और भूतदया के अमूल्य - तत्त्व उनकी आत्मा में परिपूर्णता को प्राप्त हो गये।
उनके महान् ज्ञान ने उन्हें सपूण ब्रह्माड के अनादि, अनन्त और । अपरिमेय एवं शाश्वत् धर्म-सिद्धान्तो के साथ सयाजित कर दिया। जहा
संसार के अन्य अनेक महात्मा इतिहास मे खडे है, वही हम प्रात स्मरणीय 1 महावीर स्वामी को अपने अलौकिक आत्म तेज से असाधारण तेजस्वी - के रूप में देखते है । उनका तपस्या से प्रज्वलित जीवन, सत्य और अहिंसा ' के दर्शन के लिये किया हुआ एक अत्यत और असाधारण शक्तिशाली सफळ
प्रयत्न दिखलाई पडता है। सत्य और अहिंसा की समस्या को उन्होने । अपने आत्म बलिदान द्वारा सुलझाया। आज के इस वैज्ञानिकता प्रधान