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अ०१०/प्र०२
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ३०३
यस्य त्री पूर्णा मधुना पदान्यक्षीयमाणा स्वधया मदन्ति। य उ त्रिधातु पृथिवीमुत द्यामेको दाधार भुवनानि विश्वा॥
ऋग्वेद / १/१५४/४। सायणभाष्य-"--- एवं चतुर्दश लोकान् विश्वा भुवनानि सर्वाण्यपि तत्रत्यानि भूतजातानि। --- पृथिव्यप्तेजोरूपधातुत्रयविशिष्टं यथा भवति तथा दाधार धृतवान्--- उत्पादितवानित्यर्थः।"
यहाँ बतलाया गया है कि चतुर्दश लोकों को अर्थात् उनमें रहनेवाले समस्त प्राणियों को विष्णु ने उत्पन्न किया।
उरुक्रमस्य सहिबन्धुरित्था विष्णोः पदे परमे मध्व उत्सः॥
ऋग्वेद/१/१५४/५। सायणभाष्य-"विष्णोर्व्यापकस्य परमेश्वरस्य परम उत्कृष्ट निरतिशये केवलसुखात्मके पदे स्थाने मध्वो मधुरस्योत्सो निष्यन्दो वर्तते।"
यहाँ विष्णु को सर्वव्यापी परमेश्वर विशेषण से विशिष्ट किया गया है।
इस प्रकार ऋग्वेद में विष्णु को सर्वव्यापी परमेश्वर, लोक का निर्माता एवं समस्त प्राणियों को जन्म देनेवाला कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि विष्णु के सृष्टिकर्तृत्व की अवधारणा बहुत प्राचीन है।
पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री भी लिखते हैं-"विष्णु देवता तो वैदिककालीन हैं, अतः वैष्णवसम्प्रदाय की उत्पत्ति से पहले विष्णु को कर्त्ता नहीं माना जाता था, इसमें क्या प्रमाण' है? कर्तृत्ववाद की भावना बहुत प्राचीन है। इसी प्रकार शिव आदि भी पौराणिककाल के देवता नहीं है। हिन्दतत्त्वज्ञान नो इतिहास में लिखा है___"आर्योना रुद्रनी अने द्राविडोना शिवनी भावनानुं सम्मेलन रामायण पहेला थयेलु जणाय छे। ई० स० पू० ५०० ना आरसामां हिन्दुओनी वैदिकधर्म तामीलदेशमा प्रवेश पाम्यो त्यारे विष्णु अने शिवसंबंधी भक्तिभावना क्रमशः संसार अने त्यागने पोषनारी दाखल थवा पामी। वन्ने प्रणालिका अवरोधी भाव थी टकी रही। परन्तु ज्यारे बौद्धीअ अने जैनोए ते वे देवोनी भावनाने डगाववा प्रयत्न कर्यां त्यारे प्रत्येक प्रणालिकाए पोतपोताना देवनी महत्ता बधारी अनुयायिओंमा विरोध जगव्यो।"
"इससे स्पष्ट है कि द्रविड़ देश में कुन्दकुन्द के पहले से ही शिव की उपासना होती थी। अतः यदि कुन्दकुन्द ने अपने ग्रन्थों में विष्णु , शिव आदि देवताओं का
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