Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 867
________________ शब्दविशेष-सूची / ८१३ सन्मतिसूत्र, सन्मतितर्क, सन्मति ५२५ का प्रचलन), ३३ (पाषाणघटिता सप्ततिकाचूर्णि ७६५, ७७६, ७७७ सरस्वती), ३६ सप्तभंगी-विकासवाद ३६९, ४४२ सर्वथा सचेलमुक्तिवादी (श्वेताम्बर और सप्तविध जिज्ञासाएँ ४४५, ४४६ ___अर्धफालक) ५६८ समन्तभद्र स्वामी ४४, १८१, ४८९, ५२८, सर्वनन्दी आचार्य २४२, २९९, ३०० ५२९ सर्वाथसिद्धि टीका २०९, २२९, २३७, २४४, समन्तभद्रस्वामी-कथा ४९८, ६९१ २६१, २६३-२६६, ३७१, ३७७, समय (छह अर्थ) ४७७ ३८०, ३९२, ३९५, ३९६, ४०४, समयसार २०७, २२०-२२६, २३०, २३१, ४७३, ४८१, ४९३, ५२७, ५३५, २३५, २३६, २५१-२५५, २५७, ५७७, ६२९, ६३४, ६४५, ६७८, २५९, २६८-२७०, २७२-२७५, ६८७, ६९९, ७०३ २७७, २८१, २८२, ३०१, ३४६, -दो शब्द (सिद्धा० पं० फूलचन्द्र ३४८, ३५१, ४२१, ४७०, ४७४, शास्त्री) ६४८ ४७५, ४७८ - प्रस्तावना (सिद्धा० पं० फूलचन्द्र - आत्मख्यातिटीका (आ० अमृतचन्द्र) शास्त्री) १८९ ३३८, ३३९, ३४७, ३५२, ३७२, सागरमल (डॉ०) ५४३,५४४, ६७१, ६७२, ३९३, ४७७ ७०६ - तात्पर्यवृत्ति (आ० जयसेन) ६० - अभिनन्दन ग्रन्थ (देखिये, डॉ०....) समयसुन्दर गणी ४९२ सागारधर्मामृत ७१ समलैंगिक विवाह ६३३ साङ्ख्यकारिका ३४८ समवायांगसूत्र ३६९, ३९४, ५८४, ७१४, साङ्ख्यमत ३४३, ४७२ ७५९ सान्निपातिकभाव (मिश्रभाव) ४३६ समाधितन्त्र (समाधिशतक) २६२, २६३, सामन्तभद्र (श्वेताम्बर) ४८९ २६६, २६७, ४७१ सिंहनन्दी मुनि (भट्टारकपरम्परा के प्रथम सम्बोधसत्तरी (रत्नशेखर सूरि, श्वे०) ५९० आचार्य) ९१, ९२ सम्मेदशिखर १२८, १२९, १३० सिंहवर्मा (काँची का राजा) २४२ सम्यक्त्वोत्पत्ति के बाह्य हेतु ५९२ सिंहसंघ २७, ३४ सम्यग्दर्शन का विचित्र लक्षण १३०, १३१ ।। सित्तरीचूर्णि ७१९, ७४७ सरजस्क (कापालिक) ५९७ सिद्धभक्ति (पूज्यपाद) ५२७, ६३३ सरस्वती (सारस्वत) गच्छ १२, १४, २३, सिद्धसेन-द्वितीय (सन्मतिसूत्रकार, दिगम्बर) २६, २७, ३२ (सरस्वतीगच्छ नाम ४६८, ४६९, ५२५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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