Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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शब्दविशेष-सूची / ८११ श्वेतपट (सेयवडो) ६०३ श्वेतपटमहाश्रमणसंघ २९१ श्वेतपटसंघ (सर्वथा सचेलमुक्तिवादी) ५६८ श्वेताम्बर आगम साहित्य ४६९ श्वेताम्बरमत में दीक्षा के अयोग्य पुरुषों,
स्त्रियों, नपुंसकों की संख्या एवं प्रकार
६५२-६५५ श्वेताम्बर-यापनीय-मातृपरम्परा (उत्तर
भारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थ-परम्परा)
५४३, ७१४, ७२० श्वेताश्वतरोपनिषद् ४४९
शून्यवाद ३४२ शून्याद्वैत ३३४ शोधादर्श (पत्रिका)-(अंक ३४, मार्च ।
१९९८) १४८, १४९ शौरसेनी प्राकृत ७२५ शौरसेनीकरण ७१४, ७४३ श्यामाचार्य (पण्णवणासुत्त = प्रज्ञापनासूत्र के
कर्ता) ६३९ श्रमण (मासिक पत्र) ४८५ श्रमण भगवान् महावीर (मुनि कल्याण
विजय) ३, २९०, २९१, २९९,३०४,
३०६, ३०८, ४९० श्रवणबेलगोल ९३ श्रवणबेलगोल-सिद्धरबस्ती-स्तम्भलेख (क्र.
१०५/२५४) ३६ श्रवणबेलगोल-सिद्धरबस्ती-स्तम्भ-लेख
(क्र. १०८/२५८) ३५, ३७ श्रीकित्याचार्य (यापनीय) ५६६ श्रीविजयजिनालय २८३-२९० श्रीविजयशिवमृगेशवर्मा (कदम्बवंश) २९१
२९३ श्रीविजय (सेनापति) २८६ श्रुतकेवली ४७३ श्रुतसागर सूरि (भट्टारक, १५वीं शती ई०)
५०, १९१, ६०१ श्रुतावतार (इन्द्रनन्दी) ४१, १८३, १८६,
१९०, ५५१, ७३२, ७७९, ७८५ श्रुतावतार (विबुधश्रीधर) ५५२, ७३२ शृंगारशतक (भर्तृहरि) २७५ श्लोकवार्तिक (आ० विद्यानन्द) १८६
षट्खण्डागम (छक्खंडागम) १८१, १८३,
२३६, २८९, ५४३, ५४४, ५४८५६२, ६६१, ६६२, ६६४, ६६५, ६८५ (तीन कन्नड़ प्रतियाँ), ६८६,
६९३ (ताम्रपत्रोत्कीर्ण),७०६, ७२७ - पुस्तक १ : ३६५, ३७७, ३९३,
४१३, ५५४, ५८१, ५९१, ५९२, ६०४, ६१३, ६३२, ६४४, ६५२, ६७४, ६८१, ६८३, ६९१, ७०० - पुस्तक ४ : ६२२, ६४३ - पुस्तक ५ : ३७४, ५६०, ६२८ - पुस्तक ६ : ५९२, ५९४, ६११,
६१२, ६१३, ६२१, ६२९ - पुस्तक ७ : ४१३, ५६०, ५८२,
६०४, ६२७, ७७२ - पुस्तक ८ : ५९४, ५९५, ६२२,
६२५, ६४९, ६५० - पुस्तक ९ : ५५०, ५९५ - पुस्तक ११ : ६५६, ६५७
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