Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 860
________________ ८०६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ भावलिंग (दिगम्बर) ६०३, ६२९, ६३२ मनुष्यिनी, मणुसिणी, मानुषी (मनुष्यजातीय भाववेद ६२९ द्रव्यस्त्री) ५७९, ६४१,६४२,६४४भावसंग्रह (वामदेव) ९६९ ६४७, ६६८, ६६९, ६७२-६७७, भावस्त्रीवेद ६६८ ६८७, ६८८, ७०५ भावेन्द्रिय-द्रव्येन्द्रिय ६९९, ७०० मनुष्यिनी, मणुसिणी, मणुस्सी, मानुषी (मनुष्यजातीय भावस्त्री अर्थात् शरीर भूतदिन्न ५४७, ५४८, ५७०, ५७१ से पुरुष किन्तु भाव से स्त्री) ५४४, भूतबलि १८१, १८२, ५४३, ५४४, ५४७, ५७९, ५८०, ५८२ (मनुष्यिनीसंज्ञा ५४८, ५५१, ५७०, ५७१ विग्रहगति में),६४१,६४२,६४४भूतार्थनय २०७, ४७० ६४८, ६५०, ६५१, ६५८, ६५९, भूरामल ब्रह्मचारी (आचार्य ज्ञानसागर जी) ६६७, ६६८, ६७१, ६७२-६७७, ५३७ ६८१, ६८४, ६८८, ६९६,७०५ भेलसा (भूपाल-भोपाल) ८ मन्त्रतन्त्रशक्ति ५५० मन्दिरमठवासी मुनिपरम्परा १०१ एम० ए० ढाकी (प्रोफेसर) १८६, १८७, मयीडवोलु-दानपत्र २९६ २८६, ४५२-४६४, ४६७, ४७२, मरुदेवी ६१४, ६१५, ६१६, ६२२ ४७७, ४७९, ४८२ मर्कराताम्रपत्रलेख ३७, २८३, २८५-२८७, मज्झिमनिकायपाळि ४४४, ४५१ २८९, ३०६, ३०७, ४५५ मणुसिणी (देखिये 'मनुष्यिनी') मलयगिरि (श्वे. मुनि) ७५२ मण्णे अभिलेख (क्र. १२२) ३७, २८७, २९५ । मल्लवादी (सन्मतितर्क के टीकाकार, श्वे०) - (क्र. १२३) ३७ ४६८, ४६९, ४७२ मथुरागम ६६१, ६६५ मल्लितीर्थंकर ५८३ मथुरा-शिलालेख ३०८, ५४८, ५५० महाकर्मप्रकृतिप्राभृत २४७,५४४,५४५, ५७३ मदने-अभिलेख १०७ महाप्रत्याख्यान २१७, ४६६ मध्यदीपक न्याय ४०४ महाबल (राजकुमार) ५८३, ६०५, ६०६ मनुष्य (१. भावपुरुषवेदी द्रव्यपुरुष, २. महाभारत ३०४ भावनपुंसकवेदी द्रव्यपुरुष, ३. महावाचक ७५८ द्रव्यनपुंसक मनुष्य) ६५१, ६८०, महावीरभट्टारक ५३ ६८१, ६८२ महिपाल पण्डित ३१६ मनुष्य पर्याप्त (भावपुरुषवेदी एवं भाव- महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज' डॉ० > ११५ नपुंसकवेदी द्रव्यपुरुष) ६८१ माइल्ल धवल १९० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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