Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 862
________________ १४७ ८०८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ 'Yapaniya Sangha, a Jain Sect' रामायण (वाल्मीकि) १८१ (Bombay University Journal, रिचार्ड पिशल (डॉ०) ४८७ May 1933)-Dr. A.N. रूपनारायण वसदि (कोल्हापुर) ९६ ___ Upadhye ५०६ यापनीयसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण ५६५ लब्धिसार (नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती) ११३, युगपद्वाद, यौगपद्यवाद, युगपत्पक्ष (देखिये, २४४, ३७५, ३७६, ३८२ केवलि-उपयोगद्वय) ललितविस्तरा (हरिभद्रसूरि) ३९०, ४१९, युक्तिप्रबोध (श्वे० आ० मेघविजय जी) ६०५, ६१६ १३३ लिंगपाहुड (कुन्दकुन्द) ६०, २२०, २२७, युक्त्यनुशासन (समन्तभद्र) ३४० ३०४, ३०५, ४६४ योगदर्शन (पतञ्जलि) १८१ लिङ्गप्राभृतोक्त शिथिलाचार ४६४ . योगसार (जोइन्दुदेव) २६१, २६८, २७१, लीलावती जैन, सौ० (सम्पा.-धर्ममंगल) २७२, ४८३ योनिमती ७०१ लोकविनिश्चय (ग्रन्थ) २४२, २४३ लोकविभाग २४२, २४३, २९९, ३०० रणावलोक कम्भराज (राष्ट्रकूट शासक) लोकसेन (आचार्य) १८३ ४५८ लोकानुगामिनी दृष्टि ६७१ रतनचन्द्र जैन मुख्तार (पण्डित) : व्यक्तित्व लोकानुयोग-विषयक-प्रकरणसमूह २९९ एवं कृतित्व, भाग १ : ३७४, ३७५, लोकानुसारिणी चक्षु ६७१ ७०२ रत्नकरण्डश्रावकाचार ५०८, ६७७, ६९१, लोयपाहुड २९९ ७०२ लोहाचार्य द्वितीय ७, १५, ४७ - भूमिका (पं० जुगलकिशोर मुख्तार) लोहार्य (लोहाचार्य) ३१०, ३११, ३३२ ५०८ लौकिक मुनि ५९, १८२ रथवीरपुर (रहवीरपुर) ४९६ लौकिक व्रत (भट्टारकसम्प्रदाय-प्रवर्तित)रन्न (महाकवि) १११ रविव्रत, रोहिणीव्रत, मुकुटसप्तमीव्रत, रयणसार ३०४, ३०५ आकाशपंचमीव्रत, सुगन्धदशमीव्रत, राचमल्ल, राजमल्ल (गंगवंशी नरेश, इनके कोकिलापंचमीव्रत, चन्दनषष्ठीव्रत, महामंत्री चामुण्डराय थे) ९२ नवग्रहविधान आदि १२५ राजवार्तिक भाष्य (तत्त्वार्थराजवार्तिक) १८६ राजाराम जैन (प्रो०, डॉ०) ४८५, ४८६ वक्रगच्छ (कुन्दकुन्दान्वय) ३९ रामप्रसाद शास्त्री (पं०) ६१०, ६८८ वक्रग्रीव (कुन्दकुन्द) ३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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