Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 861
________________ शब्दविशेष-सूची / ८०७ माउयाणुयोग (मातृकानुयोग) २३४ -आचारवृत्ति (आ० वसुनन्दी) २२३, मांसाशन (आपवादिक-श्वे०) ३३०,४६५ ४७० माघनन्दी (आचार्य, एकांगधारी) २७, ३११ ।। मृगचरित्र (यथाछन्द-भ्रष्ट दि० जैन मुनि) माघनन्दी प्रथम (इण्डि. ऐण्टि. पट्टावली) ७, १४, ४६, ४७, ४८ मेषपाषाणगच्छ (कुन्दकुन्दान्वय) ३९ माघनन्दी (कोल्हापुर के महाराजा गण्डादित्य मैक्समूलर ४४६ के गुरु) ८२-८४, ८७-९०, ९६, मोक्खपाहुड २०६, २२२, २६६, २६७, २७१, ९९, १०० ३५५, ५०७ माध्यमिककारिका (नागार्जुन) ३५८ - श्रुतसागरटीका ६२, ४६० मान्यनगर-अर्हदायतन २८६, २८७ मोटी साधु वन्दना : (श्वे० ग्रन्थ) ६१९ मारसिंह द्वितीय (गंगवशी राजा) २८६ ।। मोनियर मोनियर विलिअम्स संस्कृत-इंग्लिश मालियक्के (एक भट्टारक की गृहस्थशिष्या) . डिक्शनरी १२० १०६ मोहनीय के ५२ नाम ७५८, ७५९ मित्रनन्दिगणी ४९२ मिलापचन्द्र कटारिया (पं०) ७२ यति ७१४, ७१८, ७४५ मीडिएवल जैनिज्म (सालेतोरे) २८८ यतिग्रामाग्रणी (भदन्त शाकटायन) ७१८, मीमांसाश्लोकवार्तिक (कुमारिल भट्ट)४४८, ७४२, ७४३ यतिवृषभ (आचार्य) २१५, २४०, २४३, मुकुटसप्तमीव्रत (भट्टारकप्रचलित) १२५, २४७, ७१३, ७१४, ७१५, ७१८, १३२ ७१९, ७२५, ७३०, ७३४, ७४१, मुण्डकोपनिषत् ३३५ ७४२, ७४८ मुनिचक्रवर्ती १०९ यतिसम्मेलन ७२६ मुनिलिंगाभास ६०२ यथाछन्द (जहाछंद = भ्रष्ट दि० जैन मुनि) मूडबिद्री ६८६, ६८७, ६८९, ७६४ ६०१ मूर्छा, राग, इच्छा, ममत्व-एकार्थक ७५८, यशस्तिलकचम्पू (सोमदेवसूरि) ५९८ ७५९ - श्रुतसागरटीका ५० मूलसंघ १३, १४, ३३, ३५, ३६, ३८, ३९, यापनीय (मत, मुनि, आचार्य, संघ, सम्प्रदाय, २८५ परम्परा) १११, ११३, २९१ मूलसंघीय-नन्दिसंघ ५६५ यापनीयग्रन्थ ५४३ मूलाचार ५५, ११९, २०७-२२९, २३७, यापनीय-नन्दिसंघ ३५, ५६५ २७४, २८९, ४२३, ४६६, ४७३, यापनीय-नन्दिसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण ५४६, ४८१, ५७६, ६५६, ६५७ ५६४, ५६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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