Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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भगवती सूत्र (देखिये, 'व्याख्याप्रज्ञाप्ति') भगवतीसूत्र : एक परिशीलन ( देवेन्द्र मुनि शास्त्री) ४४४, ५८५
भगवान् महावीर का अचेलकधर्म (पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री) ५९७
भट्ट प्रभाकर २९३
भट्ट, भटार, भट्टार, भट्टारक, (पूज्यता, विद्वत्ता एवं सम्मान सूचक उपाधि) ५२५४, ३०६
भट्टारक (अजिनोक्त-सवस्त्रसाधुलिंगी धर्मगुरु, सम्प्रदाय, परम्परा ) ३९-४३, ५४, ५५, ६०, ६३, ६४, ६५
- उपाधियाँ : स्वामी, जगद्गुरु, कर्मयोगी, पण्डिताचार्य, धर्मगुरु, राजगुरु, स्वस्ति ६२, ६३, ७०, ७२, ७६, १०१, १०४, १०६, १०७ भट्टारकचर्चा (पुस्तक) ७६, ८०, १४७ भट्टारकपदस्थापनाविधि ११५, ११६, १२०
भट्टारकप्रथा ४५, ४६
भट्टारकमीमांसा (पं०
भट्टारकशासन १३६
भट्टारकपरम्परा (आ० हस्तीमल - कल्पित)
४-१२, ४५, ४६, ५०, १०२-१०४, १०७-१०९
भट्टारकसम्प्रदाय (ग्रन्थथ - प्रो० जोहरापुरकर)
११, ३३, ३९, ४८, ४९, ५०, ७२, १०१, १८५
भट्टारकोत्पत्तिकथा ८२
भट्टलपुर १९
भद्दलपुर १४, १७, १९, १५७ भलपुरी १९
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शब्दविशेष- सूची / ८०५
भद्दिलपुर ७, १९
भद्रबाहु द्वितीय (दिगम्बर) २६-२९, ४७, ३११, ४८९, ५११, ५४० भद्रबाहु द्वितीय (श्वे०, निर्युक्तिकार ) ४१४, ४१५, ४८९, ५२८, ५३५
भद्रबाहु श्रुतवली ४२, ४४, १८२, १८७, १९१, ४३७, ५३७, ५३८, ५३९, ५४०
भद्रबाहुसंहिता ( भट्टारकीय ग्रन्थ) १३७ भद्रसंघ ४२ भव्य-अभव्य (वस्तुधर्म ) ३४१, ३४२ भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट पूना ५५०, ५६८ भारती (सरस्वती) ३३
भारतीय दिगम्बर जैन अभिलेख और तीर्थ
परिचय मध्यप्रदेश : १३वीं शती तक (डॉ० कस्तुरचन्द्र 'सुमन') ६३, ६४
भावनपुंसक ६५५, ६८१
भावनपुंसकत्व ६८१ भावनिक्षेप ३३४
भावनिर्ग्रन्थ ९७
भावनैर्ग्रन्थ्य (भावनिर्ग्रन्थधर्म ) ८८, ८९,
९७, १०१ भावपरिग्रह ८३०
भावपाहुड (भावप्राभृत) ५५, ५९, २१९, २२२, २३५ - २३७, २६६, २८२, ३०१, ३०४, ३४५, ३५६, ४२१, ४७४, ४९४, ४९५, ६०३ - श्रुतसागरटीका ६०३
भावमानुषी (भावस्त्री) ५७९, ६६८, ६७८ भावलिंग (श्वे० ) ५९७
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