Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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पातञ्जलयोगदर्शन-भाष्य (व्यास) ४४८ पात्रकेसरी स्वामी (पात्रस्वामी) ५२३ पारियत्त (पारियात्र देश) ३२७ पार्श्वनाथ ५३३, ५३४ पार्श्वनाथचरित (वादिराज सूरि) ५०२,५२२ पार्श्वस्थ (पासत्थ) ५५, ३०५, ६०१ पार्श्वस्थपंचक ५५, ५६, ४६४, ६०१ पार्श्वस्थादिधृत जिनलिंग कुलिंग ६०१ पार्वाभ्युदय (जिनसेन) १८४ पाल्यकीर्ति शाकटायन ६३१, ६४५, ६६१,
६६५-६७०, ६८४, ७०९ पिण्डनियुक्ति ५२९, ५३०
- मलयगिरिवृत्ति ५०३ पी० बी० देसाई, डॉ० ९७, ९८ पीटर्सन (Peterson), प्रो० १८, १९, २०,
. ३२, १९६ Peterson's Fourth Report on San
_ skrit Manuscripts. १९६ पुरातन-जैनवाक्य-सूची २१८, २४२ पुरुषनामगोत्रकर्म ६१३ पुरुषांगोपांगनामकर्म ६३५, ६३६ पुरुषवेद ६२९, ६३० पुरुषवेद (पुंवेद)-नोकषायकर्म ५८३ पुष्पदन्त (षट्खण्डागमकार) १८१, १८२,
३११, ३३२, ५४४, ५४५, ५४७,
५४८, ५५१, ५७०, ५७१ पुसगिरि ५४७, ५४८, ५७०, ५७१ पुस्तकगच्छ ३५-३८ पूज्यपाद (देवनन्दी) ४४,१८१, १८८,१९१,
२६१, २६३, ४७१ ४७४,५२६,६८७ पृथिवीकायिक नामकर्म ६३५
शब्दविशेष-सूची / ८०३ पेज्ज ७७३ पेज्जदोसपाहुड २४०, ७२७, ७३४ प्रकरणरत्नाकर (श्वे० ग्रन्थ) ६०७, ६५७,
६५८ प्रकीर्णक साहित्य (ग्रन्थ-श्वे०) ५७६,
५८५ प्रज्ञापनासूत्र, पण्णवणासुत्त, पन्नवणासुत्त
(श्वे० ग्रन्थ) ३६१, ५२५, ५६२, ५७५, ५८५, ५८६, ६३९, ६५६,
६५९ - प्रस्तावना ३६० प्रतिष्ठापाठ (महिपाल पण्डित-रचित)
३१७, ३२२-३२६ प्रवचनसार ५९, १८४, १८९, २०२-२०४,
२१४, २२०, २२१, २२६, २३०, २४८-२५०, २५४-२५९, २६४, २७०, २७६, २७७, २८०-२८२, २८९, २९३, २९४, ३०५, ३४५, ३५३-३५८, ४५५, ४७७, ४७८, ५०६, ५५५ - तात्पर्यवृत्ति (आचार्य जयसेन) ७१,
१८९, १९०, २९७, २९८ - प्रस्तावना (अँगरेजी-डॉ० ए० एन०
उपाध्ये)१७४, ३०१, ४५६, ४८५,
५०७, ५३८, ५५२ प्रवचनसारोद्धार (श्वे० ग्रन्थ) ६०६, ६१०
६१४, ६५१ -वृत्ति (सिद्धसेन सूरि शेखर) ६१२,
६३९, ६४१, ६५३-६५५ प्रवर्तक ११९, २१८ प्रशस्त उपशम ३७४
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