Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 858
________________ फ ८०४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की बृहत्कल्प-पीठिका-मलयगिरिवृत्ति ५१३ अवधारणा (श्वे० साध्वी दर्शन- बृहत्कल्पसूत्र कलाश्री) ४२७, ४३५, ७०६-७०८ -लघुभाष्य (संघदासगणी) ६४० प्राकृतलक्षण (वैयाकरण चण्डकृत) २६२ - लघुभाष्य-क्षेमकीर्तिवृत्ति ६३९,६५५ पुण्ड्रवर्धनपुर ७२६ बृहत्संग्रहणी (जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण) ५७५, ५७६, ५७७ फल्गुमित्र, फग्गुमित्त (श्वेताम्बराचार्य)४९१ बृहदारण्यकोपनिषद् ३३५ FIRE (दीपा मैहता द्वारा निर्मित फिल्म) -शांकरभाष्य ३३५ ६३३ बृहद्र्व्य संग्रह-ब्रह्मदेववृत्ति ५२९ फीरोजशाह (बादशाह) ६९ बेचरदास (पं०) ५५०, ५६८ फूलचन्द्र शास्त्री, सिद्धान्ताचार्य (पं०) ३३, बेडिया (गुजरात) अतिशय क्षेत्र ११५ ३६, २४२, ६४८, ६८६,७००,७६१ बोटिक, बोडिय (संघ, संम्प्रदाय) ३३०, ३३१, ४९० बदणेगुप्पे (ग्राम) २८३, २८४, २८५, २८८ बोटिकनिह्नव ४१६ बनारसीदास (पं०, कवि) १३३ बोधपाहुड (बोधप्राभृत) २२०, ३०४, ३०५, बलगारगण (बलात्कारगण) ३३ ५०२, ५०६, ५३८, ५४० बलाकपिच्छ ४४, १९७ बौद्धमत ३४२, ३४३, ३४४ बलात्कारगण १२, १३, १४, ३३, ३६ ब्रह्मदेवसूरि ६० बहिरात्मादि भेद ४८३ ब्रह्मवाद ३३४ बाणभट्ट ५२ ब्रह्मसूत्र (बादरायण व्यास) ४४६ बादरायण व्यास ४४६, ४५० -शांकर भाष्य ३३६, ३३७, ४४७ बारस-अणुवेक्खा २०१, २०२, २०८, २१८, ब्रह्माद्वैत ३३३, ३३४ २१९, २२२, २६४, २७७, २७८, ४२१ भक्तपरिज्ञा (भत्तपरिण्णा) २०३, २१७, २७५, बालचन्द्र (पं०, शास्त्री) २०८, ५५२ ५७६ बीजबुद्धि (तुषमाषघोषक शिवभूति) ५१९, भगवती-आराधना (जैन सं० सं० सं० ५२० सोलापुर) ५५, १९१, १९७-२०७, बुन्देलखण्ड १३६ २०९-२११, २१४, २७४, ४८०, बुहारी लगानेवाली वृद्धा ६१८ ४९२-४९६, ५१९, ५२७, ५७७ बूढी धुंदेरी (गुना, म.प्र.) अभिलेख ३६ -विजयोदयाटीका (अपराजितसूरि) बृहट्टिप्पणिका (ग्रन्थसूची) ५५० ५६-५९, २७५-२७७, ४९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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