Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 717
________________ अ०११ / प्र०५ षट्खण्डागम / ६६३ वे पुनः कहते हैं—“हम लोक में देखते हैं कि कभी बैल गाय पर आरूढ़ हो जाता है और कभी गाय बैल पर। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि गाय में पुरुषवेद का उदय है और बैल में स्त्रीवेद का, क्योंकि यह प्रवृत्ति नियमित नहीं, अपितु अनियमित होती है ।"— अनुडुह्याऽनड्वाहीं दृष्टाऽनड्वाहमनुडुहाऽऽरूढम्। स्त्रीपुंसेतरवेदो वेद्यो नाऽनियमतो वृत्तेः ॥ ४२ ॥ १३४ स्त्रीनिर्वाण - प्रकरण । फिर वे कहते हैं-"जैसे मुनि में मतिज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम से भावेन्द्रियरूप लब्धि प्रकट होती है और इसके प्रकट होने पर नामकर्म के उदय से भावेन्द्रियों के अनुसार द्रव्येन्द्रियों की रचना होती है, वैसे ही मोहनीयकर्म - जनित स्त्रीवेद, पुरुषवेद या नपुंसकवेद का उदय होने पर अंगोपांगनामकर्म के द्वारा उन भाववेदों के अनुरूप ही द्रव्यस्त्रीवेद, द्रव्यपुरुषवेद या द्रव्यनपुंसकवेद की रचना होती है। इस प्रकार जीवों में द्रव्यवेद और भाववेद समान होते हैं । अतः यह कथन गलत है कि स्त्री में पुरुषवेद का उदय हो सकता है और पुरुष में स्त्रीवेद का ' "" नाम तदिन्द्रियलब्धेरिन्द्रियनिर्वृत्तिमिव प्रमाद्यङ्गम् । वेदोदयाद् विरचयेद् इत्यतदङ्गेन तद्वेदः ॥ ४३ ॥ Jain Education International यहाँ प्रश्न उठता है कि यदि पुरुषशरीर में पुरुषवेद की ही उत्पत्ति होती है और स्त्री शरीर में स्त्रीवेद की ही, तो लोक में ऐसे पुरुष क्यों दिखाई देते हैं, जो दूसरे पुरुषों के साथ स्त्रीवत् व्यवहार करते हैं अथवा कोई स्त्री अन्य स्त्री के साथ पुरुषवत् आचरण करती है? इसके उत्तर में शाकटायन कहते हैं कि यह मनुष्य के अपने ही भाववेद का विकृत परिणाम है। जैसे कोई कामोद्दीप्त पुरुष, कामातुर स्त्री की प्राप्ति न होने पर पशु साथ मैथुन करता है, तो यह उसके पुरुषवेद की ही विकृत अभिव्यक्ति है। यह नहीं माना जा सकता कि वह तिर्यग्वेद के उदय से ऐसा करता है । इसी प्रकार जो पुरुष, पुरुष के साथ स्त्रीवत् काम व्यवहार करता है, वह अपने पुरुषवेद के ही विकृत परिणमन से ऐसा करता है । और जो स्त्री, स्त्रीनिर्वाण - प्रकरण । १३४."Having seen a cow mounted by a bull or a cow mounting a bull, this does not allow us to determine the sexual feeling (veda) of those animals as either male, female, or hermaphrodite. This is because such behaviour is not fixed (i.e., it is transient)." (Gender And Salvation, by Padmanabh S. Jaini, page 86). For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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