Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 847
________________ कपिल खुड्डक (क्षुल्लक = नवदीक्षित युवा साधु, श्वेताम्बर) ६४०, ६४१ कम्भ (राष्ट्रकूट नरेश) २८८ कम्मपयडीचूर्णि (श्वे०) ७१९ करकंडुचरिउ (कनकामर मुनि) ५०० कर्तृत्व-अकर्तृत्व ३४८ कर्मदहनव्रत १२५, १२६ कर्मप्रकृति (श्वे.) ७५०,७५१,७६५,७६९ कर्मप्रकृतिचूर्णि (श्वे०) ७६६,७६८,७६९, ७७६ कर्मप्रकृतिप्राभृत २४७ कर्मबन्धप्रत्यय ५९२ कर्मसिद्धान्त ६०६ कल्पसूत्र ६१४ - भाषानुवादः आर्यारत्न सज्जनश्री ६१५ - कल्पप्रदीपिकावृत्ति ६०८ - कल्पलताव्याख्या ६०६, ६१६, ६१७ - स्थविरावली (थेरावली) ४९१,५१०, ५४७ कल्याणविजय (श्वे० मुनि) ३, २४१, २९०, २९१, ३०१, ४९०, ७४५ कल्लूरगुड्ड-अभिलेख ३९ कषायप्राभृत दिगम्बराचार्यों की ही कृति है (लेख-पं० फूलचन्द्र शास्त्री) ७६१ कसायपाहुड (कषायप्राभृत) १८१, २४१, २४२, २८९,७१३-७२७,७३९(भाग १६), ७४८(भाग १), ७५० (भाग १३),७५२,७५८ (भाग २),७६१, ७६२ (भाग १), ७६३ (भाग १, भाग २, भाग ८), ७६४ (भाग १) ७६५ (भाग १५),७७१ (भाग १५), ७८४ (भाग १२) शब्दविशेष-सूची / ७९३ - चूर्णिसूत्र २४०, ७१५, ७१९, ७३४, ७३९,७५०, (भा. १४),७६७ (भा. १५) ७६८,७६९,७७०, (भा. १५) ७७२ (भा. १), ७७३ (भा.१, ८, १२,), ७७६, ७७७ - प्रस्तावना (भा.१) ५२, ३०२, ३०४, ३०५, ३०८, ७३८, ७४६, ७४९, ७५१, ७५२, ७५७, ७५८ - सम्पादकीय वक्तव्य (भाग १/ पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री) ७३९,७४० कसायपाहुडसुत्त ७६९ - प्रस्तावना (पं० हीरालाल शास्त्री) ७४८, ७५२ कार्तिकेयानुप्रक्षा ५८१ कालगणना (वीरनिर्वाणानुसार) ३०७, ३०८ काललब्धि ३७९ कालवङ्गग्राम २९१ काव्यप्रकाश (मम्मट)६४५ किषु-वेक्कूर (ग्राम) २८७ कीथ (Keith) ए. बी. ४४६ कुण्डकुन्दपुर ३११, ५५२ कुण्डलपुर (दमोह, म.प्र.) ८ कुदेव ६०१, ६०२ कुन्दकीर्ति (परिकर्म-टीकाकार) ५५२ कुन्दकुन्द आचार्य ३,७, १५, ३०, ३६, ३७, ४४, ४७, ५९, ६०, १०९, १८१, १८३-१८९, १९१, १९५, १९७, २०१, ४५५-४६९, ४७९, ४७१४७९, ४८१-४८५, ४९०, ५३७, ५३८, ५५१, ५५२-५५४ (परिकर्मटीका-कार), ५५५-५५६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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